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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० १० सू० १ लोकम्वरूपनिरूपणम ४०९, द्रव्यप्रदेशानां चावगाहनादुच्यते-अजीवप्रदेशा अपि सन्तीति । 'जे जीवदेसा. ते नियमा एगिदियदेसा?' तत्र ये जीवदेशास्तत्र भवन्ति, ते नियमाल-नियमंतः एकेन्द्रियदेशाः सन्ति, 'अहया एगिदियदेसाय, बेइंदियस्स देसे २' अथवा एकेन्द्रियदेशाश्च, द्वीन्द्रियस्य देशश्च, भवति२, 'अहना एगिदियदेसाय, वेइंदियाणयदेसा३' अथवा एकेन्द्रियदेशाच, द्वीन्द्रियाणां च देशाः भवन्ति । 'एक मजिल्लविरहिओ जाव अणिदिएसु जाव अहवा एगिदियदेसा य अणिदियाण य देसा य ' एवंपूर्वोक्त दशमशतके प्रथमोद्देशके प्रदर्शितत्रिकभङ्गरीत्या मध्यभङ्गविरहितः"अथवा एकेन्द्रियस्य देश.श्व द्वीन्द्रियस्य देशाश्च, इत्येवं रूपमध्यभङ्गविरहितोऽ. है इसलिये तो वहां अजीवदेश भी हैं तथा धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय के देश की और प्रदलद्रव्य के प्रदेशों की अवगाहना होती है इसलिये अजीब प्रदेश भी हैं। 'जे जीबदेला ते नियमा एगिदियदेला वहां जो जीवन हैं वे नियम ले एकेन्द्रिय जीव के देश हैं 'अहवा एगिदियदेशा य येइंदियस्पदेले २,' अथवा एकेन्द्रियों के देश हैं और एक हीन्द्रियका एकदेश है 'अहवा एगिदियदेला य देइंदियाण य देसा ३' अथवा-एकेन्द्रियों के देश हैं और थे इन्द्रियों के देश हैं ३ । 'एवं झिल्लविरहिओ जाच अणिदिएस्तु जाब अहदा एगिदियदेसा य अणिदियाण य देसाय' इस प्रकार-दशम शतक में प्रथल उद्देशक में प्रदर्शित निकभंग रीति के अनुसार 'एकेन्द्रियों के और एक हीन्द्रिय के देश' इस रूप मध्यमविकल्प से रहित ये पूर्वीक्त दो अंग अनिन्द्रियઅવાળા અદેશોની તેમાં અવગાહના થાય છે, તેથી ત્યાં અછવદેશ પણ છે અને ધર્માસ્તિકાય અને અધમસ્તિકાયના પ્રદેશની અને પુદ્ગલ દ્રવ્યના પ્રદેશોની અવગણના થાય છે તેથી ત્યાં એજીવપ્રદેશ પણ છે તે વાત પુરવાર थाय छे “जे जीवदेसा ते नियमा एगिदिय देसा १ (१) त्यां २ ।
तसा नियमधी । गन्द्रिय छन । साय छे “ अहवा एगिदिय देसा य बेइदियस्स देसे २ ' (२) अथवा मेन्द्रिय वाना देश। मन में दीन्द्रय 4 मे श य छ “ अहवा एगिदियदेसाय वेइंदियाणय देसा ३" (3) अथवा गेन्द्रिय छन । भने दद्रिय वन देशा राय . “ एवं मझिल्लविरहियो जाव अणिदिएसु जाव अहवा एगिदियदेसा य अणिदियाण व देसा य " मे प्रमाण-समां शत। ५8a1 देशामा प्र त ત્રિકમ ગ રીત અનુસાર “એકેન્દ્રિય જીવોના દેશે અને એક દ્વન્દ્રય જીવન मे देश" । मध्यम वि४५ (Hisu) थी २हित पूर्वरित मे ला (Asell) भ० ५२