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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १६० १० सू० १ लोकस्वरूपनिरूपणम् हे गौतम ! तिर्यग्लोकक्षेत्रलोको झल्लरीसंस्थितः, झल्लरीवत् संस्थितं- संस्थानं यस्य स तथा विधः प्रज्ञप्तः अल्पोच्छ्रायत्वात महाविस्तारत्वाच्च तिर्यलोकक्षेत्रलोको मल्लरीसंस्थान इत्यर्थः तदाकारो यथा-0 इति । गौतमः पृच्छति-'उडलोयखेत्तछोय पुच्छा' ऊर्वलोकक्षेत्रलोक पृच्छा, तथा च ऊर्वलोकक्षेत्रलोकः खलु कि संस्थितः किमाकारः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'उडमुइंगाकारसंठिए पण्णत्ते' हे गौतम ! ऊर्चलोकक्षेत्रलोकः खलु ऊर्ध्वमुखमुदङ्गाकारसंस्थितः शरावसंपुटाकार प्रत्यर्थः प्राप्तः, तदाकारो यथा- इति, गौतमः पृच्छति-'लोए णं भंते । कि संठिए पन्नत्ते? ' हे भदन्त ! लोकः खलुकि संस्थितः-किं कीदृशं संस्थितं संस्थानम् आकारो यस्य स तथाविधः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'गोयमा ! सुपइड्रगसठिए लोए पभत्ते तिर्यग्लोकरूप क्षेत्रलोक का आकार झल्लरी के आकार जैसा है। झल्लरी ऊँचाइ में तो कम होती है, पर उसका विस्तार बहुत होता है. तिर्यग्लोक भी ऐसा ही है. इसलिये इसे झल्लरी के आकार जैसा कहा गया है । भव गौतमस्वामी प्रभु से पूछते हैं-'उडलोप खेतलोधपुच्छा' हे भदन्त ! ऊर्ध्वलोकरूप क्षेत्रलोक का आकार कैसा कहा गया है? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'उडमुइंगाकारसंठिए पण्णत्त' हे गौतम! अलोकरूपक्षेत्रलोक का आकार ऊर्ध्वमुख कर रखे गये मृदङ्ग के आकार जैसा कहा गया है। इसका आकार टीकामें दीखाये अनुसार समझ लेवें.अब गौतमस्वामी प्रभु से पूछते हैं-'लोए णं भंते ! कि संठिए पण्णते' हे भदन्त ! लोक का आकार कैसा कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! सुपागसंठिए लोए पपणत्ते' हे गौतम! लोक का आकार सुप्रतिष्ठक के હે ભગવન તિર્થંકરૂપ ક્ષેત્રલકને આકાર ઝલરી (ઝાલર) ના જે હેય છે. ઝલરી બહ જાડી હતી નથી પણ તેને વિસ્તાર ઘણો જ હોય છે, તિબ્લેક પણ એ જ હોવાથી તેને આકાર ઝલ્લરી જે કહ્યો છે.
गौतम स्वाभाना प्रश्न-“ उडलोयखेत्तकोय पुच्छा ?” से भगवन् ! ઉર્વિલેક રૂપ ક્ષેત્રલોકને આકાર કે હોય છે?
महावीर प्रभुने। उत्तर ---" उड्डेमुइंगाकारसठिए पण्णचे" गौतम ! હવલોક રૂપ ક્ષેત્રકનો આકાર ઉર્વમુખ સ્થિત મૃદગના જેવું હોય છે. તે આકાર ટીકામાં આપ્યા પ્રમાણે સમજી લે.
गौतम स्वाभाना -" लोएण भंते । किं संठिए पण्णत्ते ?" ભગવદ્ ! લેકને આકાર કેવો કહ્યો છે?
महावीर प्रभुने। उत्त२ “ गोयमा ! सुपइटगसंठिए पण्णते " उ गीतम!