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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१० उ०४ सू०२ चमरेन्द्रादीनामग्रमहिषीनिरूपणम् १९५ त्रीणि विमानानि क्रमेग-वशिष्ठ स्वयंजलं बल्गु, इतिनामकानि सन्तीति । स्थविराः पृच्छन्ति 'ईसाणस्स णं भंते ! पुच्छा, हे भदन्त ! ईशानस्य खलु देवेन्द्रस्य कति अपमहिष्यः प्रज्ञप्ताः ? इति पृच्छा, भगानाह- 'अज्जो ! अट्ठ अग्गमंहिसीओ पण्णत्ताओ' हे आयोः ! ईशानस्य अष्टौ अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ता, 'तंजहा-कण्हा १, कण्हराई २, रामा ३, रामरक्खिया ४, चमू ५. वमुगुत्ता ६, वसुमित्ता ७ वसुंधरा ८, तद्यथा-कृष्णा १, कृष्णराजिः २ रामा ३, रामरक्षिता ४, वसूः ५, वसगुप्ता ३ वसुमित्रा ७ वसुन्धरा-च, तत्थ णं. एगमेगाए 'देवीए सेसं जहा सकस्स' तत्र खेलु 'परन्तु उनके कथन की अपेक्षा इनके कथन में विमानों को लेकर विशेपता कही गई है सा जैसे ततीयशतक के प्रथम उद्देशक में विमान कहे जा चुके हैं उसी प्रकार से वे यहां पर भी कहना चाहिये। इनमें सेोम के विमान का नाम स्वयंप्रभ है यह तो कहा ही जा चुका है। यम के विमान का नाम वशिष्ठ है, वरुण के विमान का नाम स्वयंजल है और वैश्रमण के विमान का नाम वल्गु है। अब स्थदिर प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'ईसाणस्स णं भते ! पुच्छा' हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज ईशान की कितनी अग्नमहिषियां हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'अजो । अठ्ठ अग्गहिसीओ पण्णत्ताओ' हे आयो ! देवेन्द्र देवराज ईशान की आठ अग्रमहिषियां हैं। 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं 'कण्हो, कण्हराई, रामा, रामरक्खिया, वसु, वसुगुत्ता, वसुमित्ता, वसुंघरो' कृष्णा १, कृष्णराजि २, रामा ३, रामरक्षिता ४, वस्तु ५, वसुगुप्ता ६, वसुमित्रा७, और वसुन्धरा ८, 'तस्थ णं एगमेगाए देवीए सेसं जहा सक्कस्स' इन નામની અપેક્ષાએ જ વિશેષતા રહેલી છે, તે વિમાનેનાં નામ આ પ્રમાણે કહ્યાં છે. તેમનું સ્વયંપ્રભ વિમાન છે, યમનું વશિષ્ઠ વિમાન છે, વરુણનું સ્વય જલ વિમાન છે અને વૈશ્રવણનું વશું વિમાન છે.
स्थविज्ञान प्रश्न-"ईसाणस्स णं भंते ! पुच्छा" भगवन् । हेवेन्द्र દેવરાજ ઈશાનને કેટલી અગ્રમહિષીઓ કહી છે?
महावीर प्रसन। उत्तर- “अज्जो | अटू अगमहिसीओ पण्णत्ताओ" है माया। हेवेन्द्र, हे१२१ शनने मा8 महिषामो डी छे. "तजहा" तमना नाम नीय प्रमाणे छ- "कण्हा, कण्हराई, रामा, रामरक्खिया, वसू , वसुगुत्ता, वसुमित्ता, वसुंधरा,” (१) ४!, (२) ४२, (3) राभा (४) शभक्षिता, (५) वसू, (९) सुशुप्ता, (७) सुमित्रा, (८) वसुध। 'तत्थणं एगमेगाए देवीए, सेसं जहा सफरस" ते प्रत्ये महिषान। १६-६६