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stefका टीका श० ११ ० १ सू० १ उत्पले जीवोत्पातनिरूपणम् २५७
4 गोमा ! सत्तविधवा, अबिबंधवा, अभंगा २०' हे गौतम ! उत्पल स्थो जीवः सप्तविध फर्मबन्धको वा भवति, अष्टविधकर्मबन्धकोवा भवति अथवा सप्तविध कर्मबन्धका भवन्ति, अष्टविध कर्म वन्धका वा भवन्ति, इस्येक के चत्वारो भङ्गाः४, अथ द्विके चतुरो भङ्गानाह - सप्तविध कर्मबन्धकच अष्टविधकर्मबन्धश्च भवति १, अथवा सप्तविध कर्मकच अष्टविध कर्मवन्धकाच भवन्ति २, अथवा सप्तविध कर्मवन्धकाथ अष्टविधकर्मबन्धकश्च भवति, अथवा सप्तविध कर्मवन्धकाथ अष्टविधकर्मबन्धाश्च भवन्ति ४, इत्येवम् अष्टौ भा भवन्तीति । इति विंशतितमं बन्धकद्वारम् ||२०||
है अथवा आठ प्रकार के कर्मों के बंधक होते हैं? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोया' हे गौतम! 'सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा, अट्ठ भंगा' उत्पलस्थ जीय सात प्रकार के कर्मों का बंधक भी होता है ? और आठ प्रकार के कर्मों का बंधक भी होता है २ । अथवा अनेक जीव सात प्रकार के कर्मों के बंधक होते हैं ३ और अनेक आठ प्रकार के कर्मों के भी बंधक होते हैं ४ । इस प्रकार से ये ४ भंग एक के योग में हुए हैं । द्विक योग में होने वाले चारभंग इस प्रकार से हैं- कोई एक जीव सति प्रकार के कर्मों का बंधक होता है और कोई एक जीव आठ प्रकार के कर्मो का धक होते है १, अथवा एक जीव सात प्रकार के कर्मों का बंधक होता है और अनेक जीव आठ प्रकार के कर्मों के बंधक होते हैं २, अथवा अनेक जीव सात प्रकार के कर्मों के बंधक होते हैं और एक जीव आठ प्रकार के कर्मों का बंधक हैं ३, अथवा अनेक जीव सात
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भडावीर प्रभुने। उत्तर-" गोयमा ! " हे गौतम! सत्तविह बंध agar ar ar, अट्ठ भंगा " अत्यवस्थ व सात प्रहारना हर्मना અષા પણ ડાય છે અને આઠ પ્રકારનાં કર્માંને! પણ અન્ધક હોય છે અથવા પલસ્ય બધા જીવે. સાત પ્રકારનાં કર્મોના પશુ અન્ધક ડાય છે અને આ પ્રકારનાં કર્મોના પણ બન્યક હોય છે. આ રીતે એકના ચગવાળા ૪ ભાંગા મને છે. દ્વિકસ ચેગી ચાર ભાગા નીચે પ્રમાણે બને છે. (૧) અથવા કાઈ એક જીવ સાત પ્રકારનાં કર્મોના બન્ધક હાય અને કઈ એક જીવ આ પ્રકારનાં કર્માંના અન્ધક હાય છે (ર) અથવા કાઇ એક જીવ સાત પ્રકારનાં કર્મના અન્ધક હોય છે અને અનેક જીવા આઠ પ્રકારનાં હાય છે (૩) અથવા કોઈ એક જીવ સાત પ્રકારના કર્મોને
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કર્મોના અન્યક અન્યક હોય છે.