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भगवतीसो नाह-'णो इणढे समहे' हे स्थविराः ! नायमर्थः समर्थः, नैतत् संभवति, स्थविराः पृच्छन्ति-'सें केणटेणं भते! एवं वुच्चइ-णो पभू चमरे असुरिंदे असुरकुमारराए, चमरचंचाए, रायहाणीए जाब विहारत्तए ?' हे भदन्त ! तत्-अथ केनार्थेन कथं तावत् एवमुच्यते-नो प्रभु समर्थः चमरः असुरेन्द्रः, अमुरकुमारराजः, चमरचञ्चायां राजधान्यां, यावत् सुधर्मायां समायाम् , चमरे सिंहासने टिकेन पूर्वो. तेन देवीसमूहेन साद्धम् दिव्यास् , भोगभोगान् भुनानो विहर्तुम् ? भगवानाइ'अज्जो ! चमरस्स णं असुरकुमाररन्नो चमरचंचाए रायहाणीप, सभाए सुहम्माए, माणवए चेइयखंभे वइरामएम्ल गोलवट्टसमुग्गएसु बहूओ निणसकहाओ, संनिक्वित्ताओ चिट्ठति' हे आर्याः । स्थविराः । चमरस्य खलु असुरेन्द्रस्य असुरकुमारहै क्या ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं जो इण? सम?' हे स्थविरों यह अर्थ समर्थ नहीं है । अर्थात् ऐसी बात वहां संभवित नहीं होती है। इस विषय को पुनः जानने के अभिप्राय से स्थविर भगवन्त प्रभुसे ऐसा पूछते हैं-'से केणटेणं भंते! एवं बुच्चइ, णो पभू चमरे असुरिंदे असुरकुमारराए चमरचंचाए रायहाणीए जाप विहरित्तए' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर चमरचंचा राजधानी में थावत्-सुधर्मा सभा में, चमरसिंहासन ऊपर बैठकर पूर्वोक्त त्रुटिक के साथ-देवी समूह के साथ-दिव्य भोग भोगों को भोगने के लिये समर्थ नहीं है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'अज्जो ! चमरस्स णं असुरिंदस्त असुरकुमाररन्नो चमरचंघाइ राय. हाणीए, सभाए सुहम्माए, माणवए चेयखंभे, वामएसु गोलघट्टसमुग्गएस्सु बट्टओ जिणसकहाओ संनिक्खित्ताओ चिट्ठति' हे विरो! असुरेन्द्र असुरकृमारराज चमर की चमरचंचाराजधानी में सुधर्मा
भावीर प्रभुने। उत्तर-“णो इण समद्धे " है यवि ! मे सभी शजतु नथी. स्थविशन। प्रश्न-" से केणद्वेण भते ! एवं वुच्चइ" त्या 3 ભગવદ્ ! આપ શા કારણે એવું કહે છે કે અસુરેન્દ્ર, અસુરકુમારરાજ ચમર પિતાની ચમચંચા રાજધાનીની સુધર્માસભામાં અમર નામના સિહાસન પર વિરાજમાન થઈને પૂર્વોક્ત ત્રુટિક (૪૦ હજાર દેવીઓના સમૂહ સાથે દિવ્ય ભેગે ભેગવવાને સમર્થ નથી ?
महापा२ प्रभुना उत्तर-" अज्जो |" उ मा ! " चमरम्स ण असुरिदरस असुरकुमाररन्नो चमरचचाए रायहाणीए, सभाए सुहम्माए, मोणवए चेइयखंभे, वहरामएसु गोलवट्टममुग्गएसु बहूओ निणसकहाओ सनिविखत्ताओ चिट ति" सु રેન્દ્ર, અસુરકુમારરાજ ચમરની ચમચંચા રાજધાનીમાં આવેલી સુધર્માસભામાં