________________
प्रमेयमन्द्रिका टीका श० १० उ० ३ ० १ देवस्वरूयनिरूपणम् १५ समट्टे' नायमर्थः समर्थः, 'एवं समडिया देवी समडियाए देशए तहेव' एवं पूर्वोक्तरीत्या समर्द्धिका देवी समद्धिकाया देव्याः मध्यमध्येन किं व्यतिव्रजेत् ? तथैव-नायमर्थः समर्थः, 'महिड्रिया वि देवी अप्पड्रियाए देवीए तहेव' तथा महद्धिकाऽपि देवी अल्पद्धिकाया देव्याः मध्यमध्येन तथैव व्यतिव्रजेत् , ' एवं एक्केके तिन्नि तिन्नि आलावगा भाणियव्वा, जाव महिड़ियाणं भंते ! वेमाणिणी अप्पडियाए वेमाणिणीर मज्जमज्जेणं वीइवएज्जा ?' एवं रीत्या एकैकस्मिन् त्रयस्त्रयः आलापका भणितव्या वक्तव्याः, यावत्-महद्विका खलु असुरकुमारी अल्पद्धिकाया असुरकुमार्याः मध्यमध्येन किं व्यतिव्रजेम् ? एवमेव महिद्धिका सुवणकुमारी प्रभृतिः अल्पदिकायाः सुवर्णकुमारीप्रभृतेः मध्यमध्येन किं व्यतिव्रजेत् ? यीच से होकर निकल सकती है? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-णो इण? समटे' हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। ‘एवं समड़ियाए देवीए तहेव' इसी तरह से ऐसा भी समझना चाहिये कि समद्धिक देवी समद्धिक देवी के बीचोंबीच से होकर नहीं निकल सकती है। "महिड्डिया वि देवी अप्पडियाए देवीए तहेव' परन्तु जो महद्धिक देवी है वह अल्पदिक देवी के बीचोंबीच से होकर अवश्य निकल सकती है। 'एवं एकेके तिनि तिन्नि आलावगा भाणियव्वा, जांच महिडियाण भंते । वेमाणिणी अप्पडियाए वेमाणिणीए मज्झमज्झेण वीइवएज्जा' इस रीति से एक एक में तीन तीन आलापक कहना चाहिये। यावत महर्द्धिक असुरकुमारी अल्पर्द्धिक असुरकुमारी के बीचोंबीच से होकर निकल सकती हैं क्या ? इसी तरह से महर्द्धिक सुवर्णकुमारी आदि देवियां अल्पद्धिक सुवर्णकुमारी आदि देवियों के बीचोंबीच से होकर
गीतमा सवी पात सलवी शती नथी. “ एवं समइढियाए देवीए तहेव" એજ પ્રમાણે સમદ્ધિક દેવી સમદ્ધિક દેવીની વચ્ચે થઈને નીકળી શકતી નથી - ४ाय तेनी असावधानता य त त तनी १२येथी नीजी छ. “ महि'इढिया वि देवी अप्पढियाए 'देवीए तहेव" ५२-तु महासद्धिवाजी पानी १२ये
उन अवश्य नीजी श छे " एव एकके तिन्नि तिन्नि आलावगा भाणियव्वा -जाव महि ढियाण भते ! वेमाणिणी अप्पड्ढियाए वेमाणिणीए मज्झमझेणं वीइ. पएन्जा" मा शत मसु२४मारीया वैमानि हेवी पय-तनी देवीमा विषेत्र ત્રણ આલાપકે સમજવા. જેમ કે પહેલે આલાપક અ૫દ્ધિક અસુરકુમારી આદિ દેવી મહદ્ધિક અસુરકુમારી આદિ વિષે સમજે. બીજો આલાપક બને સમદ્ધિક અસુરકુમારી આદિ દેવીઓ વિષે અને ત્રીજે મહર્થિક અસુરકુમારી