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प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १० उ० ३ सू० १ देवस्वरूपनिरूपणम् ७५ वदेव वानव्यन्तरो ज्योतिषिको वैमानिकश्च यावत् आत्मा एकं, द्वे, त्रीणि, चत्वारि, पञ्च वा वानव्यन्तराधावासान्तराणि व्यतिव्रजति, तेन परं ततः परं परर्या व्यतिव्रजति-इतिभावः । गौतमः पृच्छति-'अप्पट्टिएणं भंते देवे महिडियस्स देवस्स मज्ज मज्जेणं वीइवइज्जा ? ' हे भदन्त ! अल्पदिकः अल्पा ऋद्धिर्यस्य स तथाविधः खलु देवः किं महद्धि कस्य महती ऋद्धिर्यस्य स तथाविधस्य देवस्य मध्यमध्येन-मध्यभागेन, व्यतिव्रजेत् ? व्यति कामेत् किम् ? भगवानाह'णो इणढे सम?' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः-नैतत् संभवति ? गौतमः पृच्छति- समड्डिए णं भंते ! देवे समडियस्स देवस्स मज्जमज्जेणं वीइवएज्जा ? हे भदन्त ! समद्धिकः समा तुल्या ऋद्धिर्यस्य स तथाविधः खलु देवा समद्धिकस्य तुल्यर्द्धिकस्य देवस्य मध्यमध्येन मध्यभागेन किं व्यतिव्रजेत् ? व्यतिक्रामेत् ? भगवानाह- णो इणहे समढे ' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नैतत्और वैमानिक भी अपनी शक्तिसे तो यावत् चार पांच वानव्यन्तरादि आवासों तक चले जाते हैं. परन्तु इनसे आगे वे दूसरे की शक्ति की सहायतासे जाते हैं।
अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'अप्पड्रिएणं भते ! देवे महडियस्स देवस्स मज्झं मज्झेण वीइवइन्जा' हे भदन्त ! जो देव अल्पऋद्धिवाला होता है वह घड़ी ऋद्धि वाले देव के बीचोंबीच से होकर निकल सकता है क्या? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'णो इणटे समढे' हे गौतम! ऐसी वात संभवित नहीं है । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं "समड्डिएण भते! देवे समडियस्त देवस्स मज्झं. मज्झेण वीइवएजा' बराबर की ऋद्धिवाला देव घरायर की ऋद्धिवाले देवके बीचोंबीचसे होकर निकल सकता है क्या? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- इणढे समढे' हे गौतम! यह बात भी संभवित नहीं है। શક્તિથી તે ચાર અથવા પાંચ વાનવ્યન્તરાદિ આવાસોનું ઉલ્લંઘન કરી શકે છે, પણ તેના કરતાં આગળ જવું હોય તે અન્યની સહાયતાથી જાય છે.
गौतम स्वाभाना प्रश्न-" अप्पड्दिए ण भते । देवे मह ढियस्स देवस्स मज्झ मज्झेण वीइवइज्जा ?" उ मसन ! म ऋद्धिवाणा व शुमधि द्विपापा દેવની વચ્ચે થઈને નીકળી શકે છે ખરો ? ___ महावीर प्रभुने। उत्तर-“णो इणद्वे समठे" है गौतम! मेवी पात સંભવી શકતી નથી,
गौतम स्वाभान प्रश्न-" समहिए णं भंते ! देवे समइढियस्स देवस्स मझ मज्झेण वीरवज्जा ?" 8 लगवन्! मरासनी ऋद्धिवाणो देव બરાબરની દ્ધિવાળા બીજા દેવની વચ્ચે થઈને નીકળી શકે છે ખરા?