Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ० २९ अध्ययनोपसंहारः
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सामान्यतः कथनेन कथितः, प्रज्ञापितः विशेषतः कथनेन हेतुफलादिपज्ञापनेन प्रतिबोधितः, प्ररूपितः-तत्तदर्थस्वरूपनिरूपणेन निरूपितः, निदर्शितः दृष्टान्तोपदर्शनेन शिष्य-हृदये स्थापितः, उपदर्शितः-पूर्वोक्तमर्थमुपसंहृत्य प्रदर्शितः । इति =एतद् ब्रवीमि, यथा भगवता कथितं तथैव कथयामि न तु स्वबुद्धयापरिकल्प्येत्यर्थः ॥ सू० ७४ ॥ इति श्री विश्वविख्यात-जगद्वल्लभ-प्रसिद्धवाचक-पञ्चदशभाषाकलित-ललितकलापालापक प्रविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक-वादिमानमर्दक-श्रीशाहू छत्रपति-कोल्हापुरराजमदत्त-" जैनशास्त्राचार्य"-पदभूषितकोल्हापुरराजगुरु-बालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर
-पूज्यश्रीघासीलालबतिविरचितायाम् “उत्तराध्ययनमूत्रस्य" प्रियदर्शिन्याख्यायां व्याख्यान याम् 'सम्यक्त्वपराक्रम' नामकमेकोनत्रिंश
त्तममध्ययनं-सम्पूर्णम् ॥२८॥ विए-आख्यातः) सामान्य कथन से कहा है (पण्णविए-प्रज्ञापितः) हेतुफलके प्रज्ञापनरूप विशेष कथन से समझाया है (परूविए-प्ररूपितः) उस २ अर्थ के स्वरूपके निरूपण से निरूपित किया है। (निदंसिएनिदर्शितः) दृष्टान्तके उपदर्शन से शिष्यों के हृदय में स्थापित किया है। तथा (उवदंसिए-उपदर्शितः) पूर्वोक्त अर्थका उपसंहार करके दिखलायो है। ऐसा मैं कहता हूं-अर्थात्-जैसा भगवान् ने इस अध्ययन का अर्थ कहा है वैसा ही मैं ने तुम से कहा है। अपनी कल्पना से कल्पित कर नहीं कहा है ॥७४॥ ॥ यह उत्तराध्ययन सूत्रका सम्यक्त्वपराक नामक उन्तीसवा
अध्ययन समाप्त हुआ ॥ २९ ॥ पाणविए-प्रज्ञापितः हेतु ३४ प्रज्ञापन३५ विशेष ४थनथी समलव परूविए-प्ररूपितः से मना २१३५ने नि३५४थी नि३पित रेख छ. निर्दसणिए-निदर्शितः दृष्टान्तन पशनथी शिष्योनायमा स्थापित रे छे. उवदंसिए-उपदर्शितः तथा पूर्वात मथन। ५२ ४री हेमा छ धु હું કહું છું. અર્થાત્ જે ભગવાને આ અધ્યયનનો અર્થ કહેલ છે એ જ में तभने ४हेस छे. पातानी ४६५नाथी ४शन ४ नथी. ॥ ७४ ॥ આ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્રના સમ્યકત્વ પરાક્રમ નામનું એગણત્રીશનું
અધ્યયન સંપૂર્ણ થયું. મુરલા
उत्तराध्ययन सूत्र :४