Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनसूत्रे कोऽपि नरकाग्निःसृत्य गर्भजपर्याप्त मत्स्येपूत्पद्यान्तर्मुहूर्तमायुः प्रपूर्य क्लिष्टाध्य वसायवशात् पुनर्नरके एवोत्पद्यते, तदा लभ्यत इति भावनीयम् ॥१६९-१७०॥ (सप्तरससागरोवमा - सप्तदशसागरोवमाणि) सत्रह १७ सागरोपम प्रमाण (वियाहिया-व्याख्याता) कही गई है ॥ १६६ ॥
अन्वयार्थ (सत्तमाए-सप्तमायाः) सप्तम नरककी आयुःस्थिति (तेत्तीस सागरा-त्रयस्त्रिंशत सागरान् ) तेतीस ३३ सागरोपम प्रमाण तथा (जहन्नेणं-जघन्येन) जघन्यकी अपेक्षा (बावीसं सागरोठमा-द्वाविशति सागरोपमाणि) बाईस २२ सागरोपम प्रमाण (वियहिया-व्याख्याता) कही गई है ॥१६॥ ____अन्वयार्थ (जा चेव आउठिई नेरयियाणं वियाहिया-या चैव आयुः स्थितिः नैरयिकाणां व्याख्याता) जितनी २ भिन्न २ नरकोमें नारकी जीवोंकी उत्कृष्ट और जघन्य आयुःस्थिति कही गई है ( सा तेसिं जहन्नुक्कोसिया बवे-सैव तेषां जघन्योत्कृष्टिका भवति ) उतनी ही उनकी कायस्थिति जघन्य और उत्कृष्ट उन नारकी जीवोंकी जाननी चाहिये ।। ___ अन्वयार्य-वे नारकी जीव वहांसे निकलकर गर्भज तिर्यञ्च एवं मनुष्यों में ही जन्म धारण करते हैं। (नेरइयाणं-नैरयिकाणाम् ) नारकी जीवोंका (सए काए विजढम्मि-स्वके काये त्यक्ते ) अपने शरीरको छोडने पर (अंतरं-अन्तरम् ) अन्तर काल (उक्कोसं-उत्कृष्टम् ) उत्कृष्ट रूपसे (अणंतप्रभा छे तया जहन्नेणं-जघन्येन ४५न्यानी अपेक्षाथी सत्तरससागरोवमा-सप्तदश सागरोपमाणि सत्तर सागरीयम प्रभाय वियाहिया-व्यख्याता ४डे छे. ॥१६॥ ____भन्याथ-सत्तमाए-सप्तमायाः सातमा १२४ी २पायुस्थिति कटनी अपेक्षा तेत्तीससागरोवमा-त्रयत्रिंशतू सागरान् तेवीस सागरा५म प्रमाण तथा जहन्नेण-जघन्येन धन्यनी माथी बावीसं सागरोवमा-द्वाविंशतिसागरोपमाणि भावीस सागरोयम प्रमाण विवाहिया-व्याख्याता व छ. ॥ १६७ ॥
____ मन्वयार्थ-जा चेव आउठिई नेरइयाणं वियाहिया-यो चैव आयुः स्थिति नैरयिकाणां व्याख्याता की रक्षी मने भिन्न भिन्न न२ मा नायि वानी ઉત્કૃષ્ટ અને જઘન્ય આયુરિથતિ અહીં બતાવવામાં આવેલ છે લા સેલિ जहन्नुक्कोसिया भवे-सैव तेषां जघन्योत्कृष्टिका भवति मेटली मेनी यस्थिति જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટએ નારકીય જીવોની જાણવી જોઈએ. ૧૬૮ છે
અન્વયાર્થ_એ નારકીય ત્યાંથી નીકળીને ગર્ભજ તીર્થંચ અને મનુષ્યમાં ५ म धारण ४२ छ नेरइयाणं-नैरयिकानाम् न॥२४ीय वानु सए काए विजढम्मि-स्वके काये त्यक्ते पोताना शरीरने छ।उपाथी अंतरं-अन्तरम् मत२४७
उत्तराध्ययन सूत्र:४