Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनसूत्रे 'एगखुरा' इत्यादि।
एकखुराः, द्विखुराः, गण्डीपदाः, सनखपदाश्चेति चतुर्विधाः। तत्रैकखुराः एक खुरश्चरणे येषां ते, एकखुराः, हयादयः द्विखुराः-गवादयः, गण्डीपदाः= गण्डी-पद्मकर्णिका, तद्वत् वृत्ततया पदानि येषां ते तथा, यथा-गजादयः। सनखपदाः सहनीवर्तन्ते, इति सनखानि, सनखानि पदानि येषां ते सनखपदाः सिंहादयः ॥१८॥
स्थलचर इस प्रकार हैं-'चउप्पयाय' इत्यादि ।
अन्वयार्थ-(थलयरा-स्थलचराः) स्थलचर जो पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च जीव हैं वे (दुविहा-द्विविधाः) दो प्रकार के होते हैं। ( चउप्पया परिसप्पायचतुष्पदाः परिसश्चि) चतुष्पद-चारपैरवाले तथा परिसर्प । इनमें (चउप्पया चउनिहो-चतुष्पदाः चतुर्विधाः) चतुष्पद तियश्च चार प्रकार हैं (ते मे कित्तयओसुण-तान् मे कीर्तयतः श्रृणु) उन्हें मैं कहता हूँ-सुनो॥१७९॥ ____ अन्वयार्थ-(एगखुरा दुखुरा गंडिपय सणहप्पया-एकखुराः द्विखुराः गण्डीपदाः सनखपदाश्च ) जिनके पैरोंमें एक खुर होता है वे एक खुर पंचेन्द्रिय तिर्यश्च जीव हैं जैसे घोड़ो वगैरह (द्विखुराः ) जिनके पैरोंमें दो खुर हुआ करते है वे द्विखुर पंचेन्द्रिय तिर्यश्च जीव हैं जैसे गाय वगैरह। (गंडीपया-गण्डीपदाः) कमलकी कणिकाके समान जिनके पैर होते हैं। वे गण्डीपद पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च जीव है जैसे हाथी आदि। (सणहप्पया
स्थाय२ ॥ १२॥ छ-" चउप्पयाय" या ! अन्वयार्थ-थलचरा-स्थलचराः स्थजय२ १२ पयन्द्रिय तिर्थ य
छ । दुविहा-द्विविधाः मे प्रारना डाय छे. चउप्पया परिसप्पाय-चतुष्पदाः परिसश्च यार पावा तथा परिस५ मामाथी चउप्पया चउव्विहा-चतुष्पदाः चतुर्विधाः ॥२ वा तियय यार ना छे. ते मे कित्तयओ सुण-तान् मे कीर्तयतः श्रृणु मेन हुं छु त Air ॥ १७८ ।।
भ-क्याथ-एगखुरा दुखुरा गंडिपय सणहप्पया-एकखुराः द्विखुराः गण्डी पदाः सनखपदाश्च ना ५मां से भरी डाय छे थे ये मशवाण પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ જીવ છે. જેમ કે, ઘડા વિગેરે જેના પગમાં બે ખરી હોય છે તે બે ખરીવાળા પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ જીવ હેાય છે. જેમ કે, ગાય વગેરે. गडीपया-गण्डीपदाः भनी हांडीना रन ५५ डाय छे गए यह पथन्द्रिय तियय ७५ छ. म साथी वगेरे. सणहप्पया-सनखपदाः रेना
उत्तराध्ययन सूत्र : ४