Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका. अ० ३४ लेश्याध्ययनप्ररूपणम् प्रवक्ष्यामि कथयिष्यामि । तत्र षण्णामपि कर्मलेश्यानां कर्मस्थितिविधातृ तत्तद्विशिष्टपुद्गलरूपाणाम् , अनुभावान् रसविशेषान् मे-मम कथयतः मत्समीपे श्रृणुत॥१॥
एतदनुभावाश्च नामादिप्ररूपणातः कथिता एवभवन्तीति तत्मरूपणाय शिष्याभिमुखीकरणकारकं द्वारसूत्रमाहमूलम्-नामाइं वण्णरसगंध फास, परिणामलक्खणं ।
ठाणं ठिई गई चाउँ, लेसाणं तु सुंणेह मे ॥२॥ छाया-नामानि वर्ण-रस-गन्ध,-स्पर्श-परिणामलक्षणं ।
स्थान स्थिति गति चायुः, लेश्यानां तु श्रृणुत मे ॥२॥ टीका-'नामाई' इत्यादि
लेश्यानां नामानि, नामद्वार, तथा-वर्ण-रस-गन्ध-स्पर्श-परिणाम-लक्षणम् , वर्णश्च, रसश्च, गन्धश्च, स्पर्शश्च, परिणामश्च, लक्षणं च, एषां समाहारः-वर्ण (आणुपुचि जहक्कम-आनुपूव्यथाक्रमम् ) वह निरूपण मैं पूर्वानु पूर्वी (क्रमसे) के अनुसार ही करूँगा। पश्चानुपूर्वी के अनुसार नहीं। इस निरूपण में मै तुम्हें सर्वप्रथम (कम्मलेस्साणं छहंपि अणुभावे कर्मलश्यानाम्-षण्णामपि अनुभावान् ) कर्मस्थिति की विधायक इन तत्तद्विशिष्टपुग्दलरूप छह लेश्याओं के रस विशेष को कहता हूं सो ( मे सुणेह-मे श्रृणुत ) मुझसे सुनो ॥१॥ । ये अनुभाव नामादि से होते हैं इसलिये लेश्याओं के नामादि द्वारों को कहते हैं-' नामाइं' इत्यादि। ___अन्वयार्थ-मैं इन लेश्याओं का वर्णन ( नामाइं-नामानि ) नाम द्वार से (दण्णरसगंधफासपरिणामलक्खणं वर्ण-रस-गंध-स्पर्श-परिणामलक्षणम् ) वर्ण द्वार से रस द्वार से, स्पर्श-द्वार से, परिणाम द्वार से
पाथी में वेश्या मध्ययननु वे नि३५४ ४३ छु'. अणुपुट्विं जहक्कमआनुपूर्व्याः यथाक्रमम् मा नि३५ हुँ पूर्वानुपूवी 3भ प्रमाणुना अनुसा२०४ ४३रीश, पश्चानुपूवी ना अनुसार नहीं. मा नि३५मा साथी पास कम्मलेस्साणं छण्हंपि अणुभावे-कर्मलेश्यानाम् षण्णामपि अनुभावान् में स्थितिनी विधाय: मा तत्तविशिष्ट ५६३५ ७ वेश्यामाना २स विशेषन ४९ छु तेने मे सुणेह-मे श्रृणुत् तमे सांस ॥१॥
આ અનુભાવ નામાદિથી થાય છે આ માટે વેશ્યાઓના નામ આદિ द्वारीने छ-" नामाई" त्याहि ।। ___मन्क्याथ-ई 20 सेश्यामनु न नामाइं-नामानि नाम द्वारथी, वण्णरसगंध फासपरिणामलक्खणं-वर्ण-रस-गंध स्पर्श परिणामलक्षणम् १ वारथी,
उत्तराध्ययन सूत्र:४