Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनसूत्रे गाथेयं सुगमा। कटुकोऽपि, उक्तरीत्या विंशति भङ्गवान् भवतीति भावः ॥३१॥
कषायरसस्य भङ्गानाहमूलम्-रसओ कसाए जे उ, भइएँ से उवण्णओ।
गंधओ फासओ चैवे, भइए संठाणेओ वियं ॥३२॥ छाया-रसतः कषायो यस्तु, भाज्यः स तु वर्णतः।
गन्धतः स्पर्शतश्चैव, भाज्यः संस्थानतोऽपि च ॥ ३२ ॥ कटु रसके भंगोंको सूत्रकार कहते है--' रसओ कडुए' इत्यादि ।
अन्वयार्थ--(जे-यः) जो स्कन्ध आदि (रसओ-रसतः) रस परिणामकी अपेक्षा (कडुए-कटुकः) कटुक रसवाला होता है (से उ-स तु) वह (वण्णओ-वर्णतः) वर्णकी अपेक्षा (भइए-भाज्यः) भाज्य होता है। नियमित वर्ण उसमें हो ऐसा नियम नहीं होता है। किन्तु कोई न कोई वर्ण होता है ऐसा नियम बन सकता है। इसी तरह (गंधओ फासओ विय संठाणओ भइए-गन्धतः स्पर्शतः अपि च संस्थानतः भाज्यः) गंधकी अपेक्षा स्पर्शकी अपेक्षा तथा संस्थानकी अपेक्षा भी वह भाज्य होता है। कोई न कोई गंध कोई न कोई स्पर्श तथा संस्थानमेंसे कोई न कोई एक संस्थान ही उसमें होता है। नियमित गंध नियमित स्पर्श और निर्यामत संस्थान उसमें नहीं होता है। इसीलिये ये सब भाज्य कहे गये है। इस तरह कटुक रससे परिणत पुद्गलस्कन्ध आदिके भी बीस भंग होते है ॥३१॥
४ा रसाना लगाने सूत्र४२ मताव छ-" रसओ कडुए " त्याहि ।
मन्वयार्थ-जे-ये २४५ मा रसओ-रसतः २स परियामानी अपेक्षा कडुए-कटुकः ४३१॥ २सवाणे डाय छे से उ-स तु से वण्णओ-वर्णतः पनी अपेक्षा भइए-भाज्यः माय डाय छे. सेनामा नियमित पाय सेवा નિયમ નથી. પરંતુ કઈને કઈ વર્ણ હોય એ નિયમ બની શકે છે. આજ प्रमाणे गंधओ फासओ वि.य संठाणओ भइए-गन्धतः स्पर्शतः अपि च संस्थानतश्च મરિ ગંધની અપેક્ષા, સ્પર્શની અપેક્ષા તથા સંસ્થાનની અપેક્ષાએ પણ ભાજ્ય હોય છે. કેઈ ને કે ગંધ, કેઈ ને કઈ સ્પર્શ તથા સંસ્થાનમાંથી કેઈ એક સંસ્થાન જ એનામાં હોય છે. નિયમિત ગંધ, નિયમિત સ્પર્શ અને નિયમિત સંસ્થાન એનામાં હોતા નથી. આ કારણે એ બધા ભાન્ય કહેવાયેલ છે. આ પ્રમાણે કડવા રસથી પરિણત પુદ્ગલ સ્કંધ આદિના પણ વીસ ભંગ હોય છે. ૩૧ છે
उत्तराध्ययन सूत्र:४