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प्रियदर्शिनी टीका अ० ३६ श्लक्ष्णानां सप्तभेदनिरूपणम्
८२७ पृथिवी, तदात्मका जीवा अप्युपचारात् श्लक्ष्णा उच्यन्ते । तथा-पाषाणकल्पा कठिना पृथिवी खरा, तदात्मका जीवा अप्युपचारात्खरा उच्यन्ते । तत्र-पर्याप्तबादर-पृथिवीजीवेषु श्लक्ष्णा जीवाः सप्तविधा बोद्धव्याः॥७२॥ __ श्लक्ष्णानां सप्तभेदानाहमूलम्-किण्हा नीला य रुहिरा य, हालिदा सुकिला तहा ।
पंढुंपणगमट्टिया, खरा छत्तीसँईविहा ॥ ७३ ॥ छाया- कृष्णा नोलाश्च रुधिराश्च, हारिद्राः शुक्ला स्तथा ।
पाण्डुपनकमृत्तिकाः, खराः पत्रिंशद्विधाः ॥७३॥ टीका-'किण्हा नीला य' इत्यादि
ये तु श्लक्ष्णाः पर्याप्त बादर पृथिवी जीवास्ते कृष्णा१, नीलाः२ तथावे दो प्रकारके कहे गये हैं। (सण्हा खराय-श्लक्ष्णाः खराश्च ) एक श्लक्ष्ण और दूसरे खर-कठोर। चूर्णित लोष्टके समान जो मृदु पृथिवी है वह श्लक्ष्ण बादर पर्याप्त पृथिवी जीव है। तथा पाषाण जैसी जो कठोर पृथिवी है वह खर बादरपर्याप्त पृथिवी जीव हैं। जो बिलकुल नरम जमीन होती है और खोदने पर वालुकाके रूपमें निकलती है वह श्लक्ष्ण पृथिवी जीव हैं । यहां श्लक्षण एवं खर पृथिवीको जो जीवरूपसे कहा है वह केवल उपचारसे ही कहा गया है ऐसा जानना चाहिये । (तहि सण्हा-तत्र श्लक्ष्णाः) बादरपर्याप्त पृथिवी जीवोंमें जो श्लक्ष्णपृथिवी जीव कहे गये हैं वे (सत्तविहां-सप्तविधाः) सात प्रकारके जानना चाहिये ॥७२॥
श्लक्ष्णपृथिवीके सात भेद कहते हैं-'किण्हा' इत्यादि ।
अन्वयार्थ (किण्हा नीला य रुहिरा हलिद्दा सुकिला तहा पंडु पणग मता छ. सण्हा खराय-श्लक्ष्णाः खराश्च मे १६६५ म. मी. प२-२ દળેલા આટાના જેવી જે પૃથવી મૃદુ છે તે લક્ષણ બાદર પર્યાપ્ત પૃથવી જીવ છે. તથા પત્થર જેવી જે કઠેર પૃથવી છે તે ખર બાદર પર્યાપ્ત પૃથવી જીવ જે બિલકુલ નરમ જમીન હોય છે અને ખેદવાથી તીના રૂપમાં નીકળે છે તે ક્ષણ પૃથવી જીવ છે. અહીં શ્રવણ અને ખર પૃથવીને જે જીવરૂપથી કહેલ છે તે ફક્ત ઉપચારથી જ કહેવામાં આવેલ છે એમ જાણવું જોઈએ. तहिं सण्हा-तत्र लक्ष्णाः ॥६२ पर्यात पृथवी भा २ सय पृथवी
वामां मावेस छत सत्तविहा-सप्तविधाः सात रन J .॥७२॥ RREY पृथवीना सात से छे तेरे ४ छ- “ किण्हा " त्याहि । भन्ययार्थ-किण्हा नीलाय रुहिरा हलिद्दा सुकिला तहा पंडुपणगमट्टिया
उत्तराध्ययन सूत्र :४