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उत्तराध्ययनसूत्रे छाया--नीलाशोकसंकाशा, चासपिच्छसमप्रभाः ।
वैडूर्यस्निग्धसंकाशा, नीललेश्या तु वर्णतः ॥ ५ ॥ टीका-'नीलासोगसंकासा' इत्यादि
नीललेश्या=नीलाख्या लेश्या तु वर्णतः-वर्णमाश्रित्य, नीलाशोकसंकाशानीलश्वासावशोकश्च नीलाशोकः-वृक्ष विशेषस्तत्संकाशा-तत्सदृशी, तथा-चासपिच्छसमप्रभा चास:-पक्षिविशेषः, तस्य पिच्छं-पक्षः, तत्समप्रभा-तत्तुल्या, तथा स्निग्धो यो वैडूर्यः-मणिविशेषस्तत्संकाशा-तत्सदृशी भवतीत्यर्थः । इहाऽपि विशेषणवाचकस्य स्निग्धशब्दस्य परप्रयोग आपत्वात् ॥ ५॥
कापोतलेश्याया वर्णमाहमूलम्-अय॑सीपुप्फसंकासा, कोइलच्छदसन्निभा। ___ पारेवयगीवनिभा, काउलेसा उ वण्णओ ॥६॥ छाया-अतसीपुष्पसंकाशा, कोकिलच्छदसंनिभा ।
पारावतग्रीवनिभा, कापोतलेश्या तु वर्णतः ॥ ६॥ टीका-'अयसीपुप्फसंकासा' इत्यादि-- कापोतलेश्या तु वर्णतः वर्णमाश्रित्य, अतसीपुष्पसंकाशा अतसी-'अलसी' अब नीललेश्या का वर्ण कहते हैं--'नीला०' इत्यादि ।
अन्वयार्थ--(नीललेसो-नीललेश्या ) नीललेश्या (वण्णओ-वर्णतः) वर्ण की अपेक्षा (नीलासोगसंकासा-नीलाशोकसंकाशा) नील अशोक वृक्ष के समान है (चासपिच्छसमप्पभा-चासपिच्छसमप्रभा) चासपक्षी के पिच्छ-पांखों के समान है। तथा (वेरुलियनिद्धसंकासा-वेडूर्यस्निग्ध संकाशा) स्निग्ध (चिक्कण) वैडूर्यमणि के समान है ॥५॥
अब कापोतलेश्याका वर्ण कहते हैं-'अयसीपुष्फ०' इत्यादि। अन्वयार्थ- (काउलेसा-कापोतलेश्या) कापोतीलेश्या (वण्णओ
वे नश्यानी १ ४९ छे–“नीला" त्यादि।
अन्वयार्थ -नीललेसा-नीललेश्या नातवेश्या वण्णओ-वर्णतः पनी पपेक्षा नीलासोगसंकासा-नीलाशोकसंकाशा नle Ads वृक्षना २वी छे. चासपिच्छसमप्पभा-चासपिच्छसमप्रभा यास पक्षीना पीछ समान छ तथा बेरुलिय निद्धसंकासा-वैडूर्यस्निग्धसंकाशा स्नि२५ पैडूर्य भएना समान छ. ॥५॥
वे पातश्याने। १f ४९ छ-" अयसीपुप्फ" त्या । मन्वयार्थ --काउलेसा-कपोतलेश्या पाती देश्याने। वण्णओ-वर्णतः पनी
उत्तराध्ययन सूत्र :४