Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनसूत्रे सहितं, सकपाटमिति विशेषणं जिनकल्पिकापेक्षया विज्ञेयम् । पाण्डुरोल्लोचश्वेतवस्त्रवितानविभूषितं, गृह मनसाऽपि न प्रार्थयेत्-मनसा नाभिलषेत् , वचसा न प्रार्थयेत् , किं पुनस्तत्र तिष्ठेदिति भावः ॥४॥
किमर्थमेवमुपदिश्यते ? इत्याशङ्ख्याहमूलम्-इंदियाणि उ भिक्खुस्स, तारिसम्मि उवस्सए।
दुकराई निवारेउं, कामरागविवड्डणे ॥ ५॥ छाया-इन्द्रियाणि तु भिक्षोः, तादृशे उपाश्रये ।
दुष्कराणि निवारयितुं, कामरागविवर्धने ॥५॥ टीका-'इंदियाणि ' इत्यादि
इह तु शब्दो हेत्वर्थे, तुभ्यतः, तादृशे कामरागविवर्धने-विषयानुरागवर्धके, उपाश्रये इन्द्रियाणि स्वस्वविषयेभ्यो निवारयितुं प्रतिनिवर्तयितुम् , भिक्षो र्दुष्कराणि-दुःसाध्यानि अशक्यानीत्यर्थः ॥ ५॥ प्रकार का सुगंधित धूपों से वासित तथा (सकवाडं-सकपाटम् ) किबाड़युक्त यह विशेषण जिनकल्पी की अपेक्षा से समझना चाहिये, तथा (पंडुरुल्लोयं-पाण्डुरोल्लोचम् ) सफेद चंदोवासे युक्त ऐसे (गिहम्-गृहम्) घर की-उपाश्रय की स्वप्न में भी (न पत्थए-न प्रार्थयेत् ) चाहना न करे । और न वचन से ऐसे घर की याचना ही करे ॥४॥
ऐसा उपदेश क्यों दिया जाता है सो इसमें कारण कहते हैं'इंदियाणि' इत्यादि।
अन्वयार्थ-( उ-तु) क्यों कि (तारिसम्मि उवस्सए-तादृशे उपाश्रये) कामराग वर्धक ऐसे उपाश्रय में (भिक्खूस्स इंदियाणि-भिक्षोः इन्द्रियाणि ) रहने वाले भिक्षु की इन्द्रियों का अपने२ विषयों से प्रधान सुधित धूपानी पासवाणा, तथा सकवाडं-सकपाट भाउ , म॥ विशेष पानी मेपेक्षाथी सभा तथा पंडुरुल्लोय-पाण्डुरोल्लोचम्स
हवाथी युत सेवा गिहम्-गृहम् धनी : उपाश्रयनी स्वप्नामा ५ न पत्थएन प्रार्थयेतू याहुनान ४२. अथवा तापयनथी ५ए सवा घरनी यायनान ४२॥४॥
આ ઉપદેશ શા માટે આપવામાં આવે છે? આનું કારણ કહે छ-" इंदियाणि" त्या!ि
भ-क्याथ-उ-तुम, तारिस्सामि उवस्सए-तादृशे उपाश्रये भागने पधारनार सेवा पाश्रयमा भिकखूस्स इंदियाणि-भिक्षोः इन्द्रियाणि २वावा लिनी शन्द्रियान पात पोताना विषयाथी निवारेउ-निवारयितुं वामi दुकराई-दुष्कराणि सारे हीनतामा ५ छ. ॥५॥
उत्तराध्ययन सूत्र:४