Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ. ३५ मृत्युसमये कर्तव्यनिरूपणम् मूलम्--निम्ममे निरहंकारे, वीयरागो अगासवो। ___ संपत्तो केवलं नाणं, सासयं परिणिव्वुए तिबेमि ॥२१॥ छाया-निर्ममो निरहंकारो वीतरागोऽनास्रवः।
संप्राप्तः केवलं ज्ञान, शाश्वतं परिनिर्वृत इति ब्रवीमि ॥२१॥ टीका—'निम्ममे' इत्यादि।
निर्ममः ममत्वरहितः, निरहंकारः-अहंकाररहितः, अत्रार्थे हेतुगर्भविशेषणमाह-वीतरागः रागरहितः, उपलक्षणत्वाद्वीतद्वेषश्च, अनास्रवः-कर्मास्रवरहितः मिथ्यात्वादि तद्धत्वभावादिति भावः, शाश्वतम् अनश्वरमित्यर्थः, केवलं ज्ञानं इस शक्ति के प्राप्त होने पर प्रभु बना हुआ वह आत्मा अन्तिम समय में समाधिमरणपूर्वक देह का परित्याग करके अपनी आत्मा को शारीरिक एवं मानसिक दुःखों से रहित बना लेता है । क्यों कि इस अवस्था में इसके सकल दुःखों के हेतुभूत कर्म क्षपित हो जाते हैं ॥ २० ॥
'निम्ममे' इत्यादि।
अन्वयार्थ इस तरह (निम्ममे-निर्ममः ) ममत्व से रहित बना हुआ यह आत्मा (निरहंकारे-निरहंकारः) अहंभाव से रहित होकर ( वोयरागो-वीतरागः ) रागद्वेष से विहीन बन जाता है और फिर (अणासवो-अनास्रवः) कास्रव से रहित होकर (सासयं केवलं नाणं संपत्तो परिणिचुए-शाश्वतम् केवलं ज्ञानं संप्राप्तः परिनिर्वृतः) अनश्वर પ્રાપ્ત થયા પછી પ્રભુ બનેલ એ આત્મા અતિમ સમયે સમાધિ મરણ પૂર્વક દેહને પરિત્યાગ કરીને પોતાની આત્માને શારીરિક અને માનસિક દુઃખોથી રહિત બનાવી લે છે કેમ કે, આવી અવસ્થામાં એના સઘળા દુખના હેતભત मनो क्षय 25 जय छे. ॥ २० ॥
“निमम्मे " त्यादि।
न्म-मयार्थ- प्रमाणे निम्ममे-निर्ममः ममत्वमाथी २डित ने मात्मा निरहंकारे-निरहंकारः म माथी २डित थईन वीयरागो-वीतरागः द्वेष वरना मनी नय छे. मने पछी अणासवो-अनास्रवः भनी सास रहित बनान सासयं केवलं नाणं संपत्तो परिणिव्वुए-शाश्वतम् केवलज्ञानं संप्राप्तः परिनिवृत्तः
उत्तराध्ययन सूत्र:४