Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ०३४ लेश्याध्ययनवर्णने तेजोलेश्यावर्णनिरूपणम् ६०७ इति भाषापसिद्धा, तत्पुष्पसंकाशा, तथा-कोकिलच्छदसंनिभा कोकिलच्छदःतैलकण्टको वनस्पतिविशेषस्तत्संनिभा, तथा-पारावतग्रीवानिभा पारावतस्य-कपोतस्य ग्रीवा पाराव्रतग्रीवा तनिभा-तत्सदृशी, किंचितू कृष्णा किंचिद्रक्तेति भावः।।६॥
तेजोवर्णमाह-- मूलम्-हिंगुर्लेयधाउसंकासा, तरुणांइच्चसन्निभा।
सुर्यतुंडपईवनिभा, तेउलेसा 3 वणओ ॥७॥ छाया-हिङ्गलकधातुसंकाशा, तरुणादित्यसंनिभा ।
शुकतुण्डप्रदीपनिभा, तेजोलेश्या तु वर्णतः ॥७॥ टीका-हिंगुलय' इत्यादि--
तेजोलेश्या तु वर्णतः वर्णमाश्रित्य, हिङ्गुलकधातुसंकाशा-हिङ्गुलकः-प्रसिद्धः, धातुः गैरिकादिः, तत्संकाशा, तत्सदृशी, तथा-तरुणादित्यसंनिभा तरुणः-अभिवर्णतः) वर्ण की अपेक्षा (अयसीपुप्फसंकासा-अतसी-पुष्पसंकाशा) अलसी के फूल के समान है। (कोइलच्छदसंनिभा-कोकिलच्छदसन्निभा) तैलकंटक नामकी वनस्पति के सामान है। (पारेवयगीवनिभापारावतग्रीवासंनिभा) कबूतर की गर्दन के समान है । जैसे कबूतर की ग्रीवा कुछ कृष्ण होती है कुछ लाल होती है उसी तरह इस कापोती लेश्या का भी वर्ण होता है ॥ ६॥
अब तेजोलेश्या का वर्ण कहते हैं-'हिगुंलय' इत्यादि ।
अन्वयार्थ-(तेउलेसा-तेजोलेश्या) तेजोलेश्या (वण्णओ वर्णतः)वर्ण की अपेक्षा (हिंगुलयधाउसंकासा-हिंगुलकधातुसकाशा) हिंगुलक तथा गैरिक आदि धातु के समानहै । (तरुणाइच्चसंनिभा-तरुणदित्य संनिभा मपेक्षा अयसीपुष्फ संकासा-अतसीपुष्पसंकाशा १f Aणसाना साना को छ. कोइलच्छदसन्निभा-कोकिलच्छदसंनिभा र ४४ नामनी वनस्पतिना वो છે, કબૂતરની ગર્દનના સમાન છે. જેમ કબૂતરની ડોક કાંઈક કાળી અને કાંઈક લાલ હોય છે. એ જ પ્રમાણે આ કાપતી વેશ્યાને પણ વર્ણ હોય છે. માદા
वे तश्यान१ ४९ छ- " हिगुंलय” त्यादि।
स-क्याथ-तेउलेसा-तेजोलेश्यातेवेश्या वण्णओ-वर्णतः पनी अपेक्षा हिगुलियधातुसंकाशा-हिंगुलकधातुसंकाशा बिगो तथा ३ मा घातुन समान छे. तरुणाइच्चसन्निभो-तरुणादित्यसंनिभा मलिन य सूर्य ना वो
उत्तराध्ययन सूत्र:४