Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ० ३२ प्रमादस्थानवर्णनम् छाया-यथा विडालावसथस्य मूले, न मूषकाणां वसतिः प्रशस्ता ।
__एवमेव स्त्रीनिलयस्य मध्ये, न ब्रह्मचारिणः क्षमो निवासः ॥१३॥ टीका--' जहा विराला ' इत्यादि।
यथा-विडालावसथस्य-मार्जारनिवासस्थानस्य मूले समीपे । मूषकाणां, वसतिः=निवासः न प्रशस्तान हितकरा, एवमेव स्त्रीनिलयस्य-स्त्रीनिवासस्य, मध्ये ब्रह्मचारिणो निवासः, न क्षमः=न योग्यः, तत्र ब्रह्मचर्यविधात संभवात् ॥१३॥
विवक्तवसताववस्थितावपि यदि कदाचिस्त्री समागच्छेत् , तदा यत् कर्तव्यं तदाह-- मूलम्-नरूवलावण्ण विलासहाँसं, न जंपियं इंगिय पहियं वा। इत्थीण चित्तसि निवेसईत्ता, दैलै ववस्से समंणे तवस्सी ॥१४॥ विविक्त वसति के अभाव में सूत्रकार दोष कहते हैं-'जहा'इत्यादि
अन्वयार्थ-(जहा-यथा) जैसे (विरालावसहस्स मूले-बिडालावसथस्य मूले ) बिलाड़ी के स्थान के समीप (मूसगाणं वसइ-मूषकाणां वसतिः) चूहों का रहना (न पसत्था-न प्रशस्ता) हितावह नहीं होता है । ( एमेव-एवमेव) इसी तरह ( इत्थी निलयस्स मज्झे-स्त्री निलयस्य मध्ये ) स्त्रीयुक्त मकान में (बंभयारिस्म निवासो न खमोब्रह्मचारिणः निवासः क्षमः न) ब्रह्मचारी का रहना योग्य नहीं है। ___भावार्थ-बिल्ली जिस मकानमें रहती हो उस मकानमें चूहों की खैर नहीं होती है उसी प्रकार स्त्रीयुक्त मकान में ब्रह्मचारी का रहना उसके ब्रह्मचर्य का घातक होता है ॥ १३ ॥
विवित क्सतिना अभावमा सूत्र होष सतावे छ—“जहा" त्याह!
सयार्थ-जहा-यथा म विरालावसहस्स मूले-बिडोलावसथस्य मूले मिसाडीन स्थाननी पासे मूसगाणं वसइ-मूषकाणां वसतिः १२नु २३वुन पसत्था -न प्रशस्ता हितावहातुनथी एमेव-एवमेव २४ प्रमाणे इत्थीनिलयस्स मज्झेस्त्री निलयस्य मध्ये स्त्रीने। सपाट .य सेवा भानमा बंभयारिस्स निवासो न खमो-ब्रह्मचारिणः निवास : न क्षमः प्रझयारीनु २७ सना ब्रह्मयय भाटे ઘાતક હોય છે. ૧૩
ભાવાર્થ_બિલાડી જે મકાનમાં રહેતી હોય તે મકાનમાં ઉંદરની તાકાત નથી કે તે ત્યાં નિઃશંક રહી શકે, તેજ રીતે સ્ત્રીવાળા મકાનમાં બ્રહ્મथाशना निवास तेना ब्रह्मययना धात: मन छ. ॥ १३॥ उ० ५९
उत्तराध्ययन सूत्र :४