Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ. ३२ प्रमादस्थानवर्णनम् ।
परित्यज्या शेषाः अन्ये द्रव्यादि संगाः सुखोसराः अनायासपरित्यज्याः, भवन्त्येव । तत्र दृष्टान्तमाह-'जहा' इत्यादि। यथा येन प्रकारेण, महासागरं स्ययम्भूरमणम् , उत्तीय-उल्लद्ध्य, गङ्गासमानाऽपि-गङ्गातुल्याऽपि, नदी सुखोत्तरा-अनायासोल्लघ्या भवति । शूद्रनदी तु आस्ताम् । सर्वसंगानां रागरूपत्वे तुल्येऽपि, स्त्रीसङ्गानामेव प्रधान्यात् , तत्परिहारेऽन्ये सर्वे विषयसंगाःसुतरां परिहार्या भवंतीति भावः॥१८॥ हो जाता है सो दिखलाते हैं --'एएय' इत्यादि। ____ अन्वयार्थ--(एएय संगे-एतान् संगान ) इन स्त्री सहवास युक्त निवास आदि संबंधोंका (समइक्कमित्ता-समतिक्रम्य) परित्याग करने पर (सेसा सुहुत्तरा चेव हवंति-शेषाः सुखोत्तराः चैव भवन्ति) अन्य द्रव्यादिक संबंधोंका परित्याग सहज होता है । ( जहा महासागरमुत्त रित्ता-यथा महासागरं उत्तीर्य) जैसे स्वयंभूरमगको उलंघन करनेवाले व्यक्तिके लिये (गंगासमाणा अवि नई सुहुत्तरा हवंति-गंगासमाना अपि नदी सुखोत्तरा भवति) गंगाके समान विशाल नदी भी अनायास रूपसे पार करने योग्य हो जाती है। क्षुद्र नदीकी तो बात ही क्या है। समस्त संबंधों में रागरूपता तुल्य होने पर भी स्त्री संगमें प्रधानता होनेसे उसके परिहार होने पर समस्त विषयसंगका परिहार हो जाना सहज है। ___ भावार्थ-स्वयंभूरमणको पार करनेकी सामर्थ्य रखनेवाले व्यक्तिको गंगा जैसी नदियोंको पार करना कोई बड़ी बात नहीं है। इसी प्रकार जिन महात्माओंने स्त्रियोंके दुस्तर संगका परित्याग कर दिया है थ नय छ. मे मतामां आवे छे-" ए एय" त्याह!
___ मन्वयार्थ -ए एय संगे-एतान् संगान् २॥ श्री सहवास युत निवास माहि समधानी समइक्कमित्ता .. समतिक्रम्य परित्याग ४२वायी सेसा सुहुत्तरा चेव हवंति-शेषा सुखोत्तराचेव भवन्ति अन्य द्रव्याहि पाना परित्या सडक मनी onय छ. जहा महासागरमुत्तरित्ता-यथा महासागरं उत्तीर्य म स्वयंभू २म.
नु धन ४२११४in व्यतिना भाटे गंगासमाणा अवि नई सुहुत्तरा हवंतिगंगासमाना अपि नदी सुखोत्तरा भवन्ति ना समान nि नही ५॥ मनाયાસરૂપથી પાર કરવા ચોગ્ય બની જાય છે, તો પછી નાની એવી નદીની તે વાત જ કયાં રહી. સમસ્ત સંબંધમાં રાગરૂપતા તુલ્ય હોવા છતાં સ્ત્રી સંગમાં મુખ્યતા હોવાથી તેનું નિવારણ થતાં સમસ્ત વિષયસંગને પરિડાર થઈજ સહજ છે.
ભાવાર્થ–સ્વયંભૂરમણને પાર કરવાનું સામર્થ્ય રાખવાવાળી વ્યક્તિને ગંગા જેવી નદીને પાર કરવી કેઈ મોટી વાત નથી. આ પ્રમાણે જે
उत्तराध्ययन सूत्र :४