Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
१२६
भगवतीसूत्रे
पृच्छति-'अस्थि णं भंते ! ईसाणस्स एवं जहा सकस्स, नवरं चंपाए नयरीए जाव उववन्ना' हे भदन्त ! सन्ति खलु ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य त्रायस्त्रिं. शका देवाः प्रतिपादितास्तथैव प्रतिपत्तव्याः, नवरम् शक्रस्य त्रायस्त्रिंशकदेवापेक्षया ईशानस्य त्रायस्त्रिंशकदेवानां विशेषस्तु-चम्पायां नगर्या यावत्-उपपन्नाः, तथाच यावत् करणात्-तस्मिन् काले, तस्मिन् समये इहैव जम्बूद्वीपे द्वीपे भारत वर्षे चम्पानामनगरी आसीत् , वर्णकः, अस्या वर्णनम् औपपातिके द्रष्टव्यम् , तत्र खलु
और अन्य कितनेक का च्यवन होता है, परन्तु उन देवोंका सर्वथा विच्छेद नहीं होता है। अप गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'अस्थि ण भंते ! ईसाणस्स, एवं जहा सकस्स नवरं चंपाए नयरीए जाव उववन्ना' हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज ईशान के त्रायस्त्रिंशक देव हैं क्या ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! देवेन्द्र देवराज ईशान के बायस्त्रिंशक देव हैं । इस विषय में समस्त त्रायस्त्रिंशक संबंधी कथन देवेन्द्र देवराज शक्र के त्रायस्त्रिंशक के कथन जैसा जानना चाहिये. परन्तु शक्र के जो त्रायस्त्रिंशक देव कहे गये हैं उनकी अपेक्षा ईशान के वायस्त्रिंशक देवों में यही विशेषता है कि ये चंपानगरी में यावत् उत्पन्न हुए हैं। यहां यावत् शब्द से ऐसा पाठ कहना चाहिये-जो इस प्रकार से है-"तेण कालेणं तेण समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपा नाम नयरी होत्था वण्णओ' इत्यादि । तथा उस काल और उस सम यमें चंपा नामकी नगरी थी. इसका वर्णन औपपातिक सूत्र में किया
गौतम २१ामान प्रश्न-"अस्थिण माते ! ईसाणस्स, एवौं जहा सकस्स नवर चपाए नयरीए जाव उवबन्ना" 3 भगवन् ! हेवेन्द्र देव२००४ शानना त्रायसिंह દેવો હોય છે ખરાં ?
મહાવીર પ્રભુને ઉત્તર–હા, ગૌતમ! દેવેન્દ્ર, દેવરાજ ઈશાનના પણ ત્રાયઅિંશક દેવ હોય છે. આ ત્રાયશ્ચિંશક દે વિષેનું સમસ્ત કથન દેવેન્દ્ર, દેવરાજ શકના ત્રાયશિકના કથન પ્રમાણે સમજવું. અહીં દેવેન્દ્ર શકના ત્રાયસિંકે કરતાં એટલી જ વિશેષતા છે કે દેવેન્દ્ર દેવરાજ ઈશાનના ત્રાય. શિક દેવે તેમના પૂર્વભવમાં ચંપાનગરીમાં વસતા હતા. બાકીનું તેમની સમૃદ્ધિ આદિનું કથન પાલાશ સંનિવેશ નિવાસી ૩૩ શ્રાવકોના કથન પ્રમાણે સમજવું. “તેઓ ઈશાનેન્દ્રના ત્રાયઅિંશક દેવરૂપે ઉત્પન્ન થયા છે.” આ સૂત્ર ५.४ ५यन्तनुं समस्त थिन अ6 . “मी " जाव ( यावत्)" ५४थी नीय सूत्रा8 अ शये छ-" तेण कालेण तेण समएण इहेब जबु. हीवे दीवे भारहेवासे चंपानामं नयरी होत्था वण्णओ" " जे मन ते
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૯