Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 650
________________ ६३६ भगवतीसूत्रे इत्येवं प्रतिपादयन् भगवान् गौतमो यावत्-श्रमणं भगवन्तं महावीर वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा, नमस्थित्वा सञ्जमेन तपसा आत्मानं भावयन् विहरति ॥मू०३॥ पुद्गलस्य सिद्धिवक्तव्यता। ___मूलम्-'तएणं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइं आलभियाओ नयरीओ, संखवणाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ। तेणं कालेणं, तेणं समएणं आलभिया नामं नयरी होत्था, वन्नओ, तत्थणं संख. वणे णामं चेइए होत्था वण्णओ, तस्स णं संखवणस्स अदूर सामंते पोग्गले नामं परिवायए परिवसति, रिउव्वेय जजुव्वेय जाव नएसु सुपरिनिटिए, छटुं छट्टेणं अणिक्खित्तेणं, तवोकम्मेणं उ बाहाओ जाव, आयावेमाणे विहरइ। तएणं तस्स पोग्गलस्स छ? छट्टेणं जाव आयावेमाणस्स पगइभदयाए जहा सिवस्स जाव विभंगे नामं अन्नाणे समुपन्ने, सेणं तेणं विभंगेणं अण्णाणेणं समुप्पण्णेणं, बंभलोए कप्पे देवाणं ठिइं जाणइ, तएणं तस्स पोग्गलस्स परिव्वायगस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था-अस्थिणं ममं अइसेसे नाणदंसणे, समुप्पन्ने, देवलोएसुणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं ठिई पण्णत्ता, तेण परं विषय ऐसा ही है । अर्थात् आप का कथन सर्वथा सत्य ही है। इस प्रकार कहकर भगवान् गौतम श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना एवं नमस्कार कर संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए अपने स्थान पर विराजमान हो गये ॥सू०३॥ આપે જે પ્રતિપાદન કર્યું તે સત્ય જ છે. ભગવન્! આપે જે કહ્યું તે સર્વથા સત્ય જ છે ” આ પ્રમાણે કહીને મહાવીર પ્રભુને વંદણા નમસ્કાર કરીને સંયમ અને તપથી આત્માને ભાવિત કરતા પિતાને સ્થાને વિરાજમાન यई गया । सू०३॥ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯

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