Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 696
________________ ६८२ भगवती रिका-आगरणं धर्मजागरिका, तां जाग्रत:-जागरणं कुर्वतः, अयमेनपा-वक्ष्य. वाणस्वरूपो यावत्-आध्यात्मिकः-आत्मगतः, चिन्तितः, कल्पितः, प्रार्थितः, गोगतः संपल्पः, समुदपद्यत-समुत्पन्नः 'सेयं खलु मे कल्लं जाव जलते समणं भगवं महावीरं वंदित्ता, नमंसित्ता, जाव पज्जुवासित्ता' श्रेयः खलु मम कल्ये प्रभाते यावत्-प्रादुष्मभायां रजन्यां सूर्य ज्वलति-उदिते प्रकाशमाने सति, श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दित्या, नमस्यित्वा, यावत्-विनयेन शुश्रूषमाणः प्राअलिपुटः पर्युपास्य, तमो पडिनियत्तस्स पक्षियं पोसहं पारित्तए तिकटु एवं संपेहेई' ततः प्रतिनितस्य-भगवत्पाश्र्थात्प्रत्यागतस्य मम पाक्षिकं पौषधं पारयितु-पालयितुम् श्रेयः इतिकृत्वा-एवं विचार्य, संप्रेक्षते-निश्चिनोति, 'संपेहिता कल्लं जाव जलंतेपोसहसालाओ पडिनिक्खमई' एवं रीत्या, संप्रेक्ष्य-निश्चित्य-कल्ये-प्रभाते, यावत्मादुष्प्रभातायो रजन्यां सूर्ये ज्वलति-उदिते प्रकाशमाने सति पौषधशालातः पतिः निष्क्राम्यति-निर्गच्छति. 'पडिनिक्वमित्ता, पौषधशालातः मतिनिष्क्रम्य निर्गत्य प्रकार का यह आध्यात्मिक, चिन्तित, कल्पित, प्रार्थित, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ 'सेयं खलु में कल्लं जाव जलंते समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमसित्ता जाव पज्जुवासित्ता' मुझे अब यही उचित है कि में प्रातः काल होते ही सूर्य के प्रकाशित हो जाने पर श्रमण भगवान् ! महावीर के पास जाकर उनको वंदना नमस्कार करके यावत् उन की पर्युपासना करके 'तओ पडिनियत्तस्स पक्खि पासहं पारिसए ति कट्ट एवं सपेहेई' वहां से वापिस लोटकर पाक्षिक पौषध पालूँ, अर्थात्-पोषे को पूर्ण करूं। ऐसा विचार किया-'संहिता कल्लं जाव जलते, पोसहसालाभो पडिनिक्खमइ ' ऐसा विचार करके फिर वह सुबह होते ही सूर्य के प्रकाशित हो जाने पर पौषधशाला से बाहर निकला 'पडिनिक्ख. પાછલે પહેરે ધર્મજાગરણ કરતાં તે શંખશ્રાવકને આ પ્રકારને આધ્યાત્મિક, शिन्तित, ४५त, प्रति , मनोगत ६५ लय-" सेयं खलु मे करू चत्व जलंते समणं भगवं महावीर वंदित्ता, नमंसित्ता जाव पज्जुवासित्ता" હવે મને એજ ઉચિત લાગે છે કે કાલે પ્રાત:કાળ થતાં જ, સૂર્યને પ્રકાશ ચારે તરફ ફેલાવા લાગે ત્યારે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરની પાસે જઈને. तभने शानभा२ अरीने सन मनी रथुपासना रीन ' तओ पडिनिपत्तरस पक्खियं पोसह पारित्तए त्ति क एष संपेहेइ" पाछा या wer પાક્ષિક પૌષધનું મારે પારણું કરવું, આ પ્રમાણે તેણે સંક૯પ ક. "संपहिता कल जाव जलंते, पोसहसालाओ पडिनिक्खमा" या प्रमाणे વિચાર કરીને, પ્રભાત થતાં અને સૂર્ય પ્રકાશ ચારે દિશામાં ફેલાતા જ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯

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