Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 732
________________ ७१८ भगवतीसूत्रे स्वपुत्रमुदायनं राजानं पुरतः अग्रे कृत्वा, तत्रैव, स्थितेच, यावत् विनयेन प्राञ्जलिपुटा भगवन्तं पर्युपास्ते, 'तएणं समणे भगवं महावीरे उदायणस्स रणो, मियावईए देवीए, जयंतीए समणोवासियाए, तीएय महतिमहालियाए जाव परिसा पडि. गया' ततः खलु श्रमणो भगवान महावीरः उदायनस्य राजो मृगावत्याः देव्याः, जयन्त्याः श्रमणोपासिकायाः तस्या महातिमहालयाया अतिविशालायाः पर्षदि धर्म परिकथयति, धर्मकथां श्रुत्वा, पर्षत् पतिगता, 'उदावणे पडिगए, मियावई देवी वि पडिगया' उदायनो राजा प्रतिगतः, मृगावती देव्यपि प्रतिगतास्वगृहं गता ॥सू० २॥ मूलम्-'तएणं सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा, निसम्म, हतुट्रा समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता, एवं वयासीमें कहा गया है प्रभु को वन्दना की और उन्हें नमस्कार किया वन्दना नमस्कार कर फिर वह अपने पुत्र उदायन राजा को आगे करके समघसरण में आई और खडी २ बडे विनय के साथ प्रभु की पर्युपासना करने लगी 'तएण समणे भगवं महावीरे उदायणस्स रण्णो मियावईए देवीए जयंतीए समणोवासियाए तीए य महति महालियोए जाव परिसा पडिगया' इसके बाद श्रमण भगवान महावीर ने उदायन राजा को एवं उस की माता मृगावती देवी को तथा श्रमणोपासिका जयन्ती को उस अति विशाल परिषद को धर्मोपदेश दिया धर्मोपदेश सुनकर पर्षत् विसजित हो गई 'उदायणे पडिगए मियावई देवी विपडिगया' उदायन राजा और माता मृगावती देवी ये दोनों भी अपने घर पर आ गये ॥१० २।। ૩૩માં ઉદ્દેશકમાં દેવાનંદાના કથન પ્રમાણે સમજવું પ્રભુને વંદણા નમસ્કાર કરીને તે પિતાના પુત્ર ઉદાયન રાજાની પાછળ, બને હાથ જોડીને વિનય पूर्व प्रसुनी ५युपासना ४२ती यही समवसरमा शमी २ही. “तएण समणे भगव' महावीरे उदायणस्स रण्णो मियावईए देवीए जयंतीए समणोवासियाए तोए य महति महालियाए जाव परिसा पडिगया " त्या२ मा श्रम ભગવાન મહાવીરે ઉદાયન રાજાને, મૃગાવતી દેવીને તથા શ્રમણ પાલિકા જયન્તીને તથા તે ઘણી વિશાળ પરિષદમાં ધર્મોપદેશ દીધે, ધર્મોપદેશ શ્રવણ કરીને પરિષદ વિસજિત થઈ ઉદાયન રાજા અને મગાવતી દેવી પણ પિતપિતાને ઘેર ચાલ્યા ગયા. સૂ૦૨ા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯

Loading...

Page Navigation
1 ... 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760