Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती पोग्गलमेत्तेहिं खंडेहि समए समए अबहीरमाणी अहीरमाणो अणताहि ओसप्पिणी अवसप्पिणोहि अवहोरंती, नो चेवणं अवहियासिया' सा खलु आकाशश्रेणी परमाणुपुद्गलमात्र खण्डैः समये समये अपहियमागा अपहियमाणा-निस्सार्यमाणा निस्सार्यमाणा सती अनन्ताभिः उत्सपिण्यवसर्पिणीभिः अपहियमाणा, नो चैव खलु अपहृता स्यात्-भवेत्, प्रकृते योजयन्नाह-' से तेणढे ण जयंती ! एवं बुच्चइ-सव्वे विणं भवसिदिया जीवा सिज्झिस्संति, नो चेवणं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्सइ' हे जयन्ति ! तत्-तथैव, तेनार्थेन-तेन कारणेन एवमुच्यतेसर्वेऽपि खलु भवसिद्धिकाः जीवाः सेत्स्यन्ति, परन्तु तेषां सिद्धि लप्यमानत्वेऽपि, नो चैव खलु भवसिद्धिकविरहितो लोको भविष्यति, जयन्ती पृच्छति--'सुत्तत्तं परिमित हो और परितः अन्य श्रेणियों से परिवेष्टि हो 'साणं परमाणु-पोग्गलमेत्ते हि खंडेहि समए समए अवहीरमाणी अवहीरमाणी, अणंताहिं ओसपिणीहि, अवसप्पिणीहि अवहीरंती, नो चेवणं अवहिया सिया' अब उस श्रेणी के परमाणु बराबर टुकडे करलो और उन्हें एक एक समय में उसमें से निकालो इस तरह की क्रिया करने में अनन्त उत्सर्पिणी और अनन्त अवसर्पिणी काल समाप्त कर दो-तो क्या वह सर्वाकाशश्रेणी समाप्त हो सकती है ? नहीं हो सकती है। 'से तेणटेण जयंती! एवं बुच्चह सव्वे वि णं भवसिद्धिया जीवा सिन्झिस्संति णो वेव ण भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्सह' तो इसी कारण से हे जयंति ! मैंने ऐसा कहा है कि जितने भी भवसिद्धिक जीव हैं वे सब मोक्ष में चले जावेंगे तो भी यह लोक उन जीवों से विरहित नहीं होगा, अव जयंती प्रभु से ऐसा पूछती है-'सुत्तत्तं णं परमाणुपोग्गलमेत्तेहिं खंडेहि समए समए अवहीरमाणी अवहीरमाणी, अणंवाहिं ओसप्पिणीहि, अवसप्पिणीहिं अवहीरती, नो अवहिया सिया " स्वेत શ્રેણીના પરમાણુ જેવાં ટુકડા કરી લેવામાં આવે અને એક એક સમયે એક એક પરમાણુ જેવડા ટુકડાને તેમાથી કાઢી લેવામાં આવે તે અનંત ઉત્સ પિણી અને અનંત અવસર્પિણ કાળ વ્યતીત થઈ જવા છતાં પણ શું सतिश अधान सभात रीयले भरी १ (नवी शती.) "से वेणटेण जयंती ! एवं उच्च सब्वे विणं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति को चेव ण' भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्स" यति। ते २0 में से કહ્યું છે કે સઘળા ભવસિદ્ધિક જી મોક્ષમાં ચાલ્યા જશે, છતાં પણ આ લેક ભવસિલિક છથી રહિત નહીં હૈય,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯