Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 759
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ३ सू० १ रत्नप्रभादि पृथ्वीनिरूपणम् ७४५ प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा-पढमा, दोच्चा जाव सत्तमा' तद्यथा-प्रथमा, द्वितीयाच यावत्तृतीया, चतुर्थी, पश्चमी, षष्ठी, सप्तमी ! गौतमः पृच्छति-पढमाणं भंते ! पुढवी किं मामा, किं गोता, पण्णता ?' हे भदन्त ! प्रथमा खलु पृथिवी किं नामा, किंगोत्रा, किनाम यस्याः सा किनामा, एवं किं गोत्रं यस्याः सा किंगोत्रा मज्ञप्ता? भगवानाह-गोयमा ! घम्मा नामेणं, रयणप्पभागोतेणं' हे गौतम ! पथमा खलु पृथिवी 'धम्मा' इतिनाम्ना प्रतीता, अथ च ' रत्नपमा' इति गोत्रण प्रतीता तत्र नामयादृच्छिकमभिधानम् , गोत्रं चान्वर्थकमवसेयमिति भावः एवं भंते ! पुढवीओ पण्णत्तानो' हे भदन्त ! पृथिवियां कितनी कही गई हैं ? तब उत्तर में प्रभु ने गौतम से कहा 'गोयमा' हे गौतम ! 'सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ' पृथिवियां सात कही गई हैं। तंजहा' जो इस प्रकार से हैं-(पढमा दोच्चा, जाव, सत्तमा) प्रथमा, द्वितीया, यावत् तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी और सप्तमी अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(पढमाणं भंते ! पुढवी किं नामा, किं गोत्ता, पण्णत्ता' हे भदन्त ! प्रथमा पृथिवी किस नामवाली और किस गोत्र वाली कही गई है ? इसके उत्तर में प्रभु ने कहा-'गोयमा' हे गौतम ! 'घम्मानामेण, रयणप्पभा गोत्तेण' प्रथमा पृथिवी घर्मा नामवाली और रत्नप्रभागोत्रयोली कही गई है। यदृच्छा (अपनी इच्छा) से जो अभिधान कर लिया जाता है-वह तो नाम है और जोअन्वर्थक अभिधान होता है मडावीर प्रसुने ! प्रमाणे प्रश्न पूछये।-" कइणं भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ' હે ભગવન્! પૃથ્વીએ કેટલી કહી છે? ત્યારે મહાવીર પ્રભુએ તેને આ प्रमाणे उत्त२ माथ्या-" गोयमा !" गौतम ! " सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ" पृथ्वीथे। सातही छे, “ तंजहा" २ मा प्रमाणे छ-"पढमा, दोच्चा, जाव सत्तमा ” पदी, भील, श्रील, याथी, पांयभी, छी, मने सातभी. गौतम स्वामीना प्रश्न-" पढमाणं भंते ! पुढवी कि नामा, किं गोत्ता पण्णत्ता ?" मगवन् ! पहेली पृथ्वीनु नाम शु छ भने गोत्र शुंछ ? महावीर प्रभुने। उत्तर-“ गोयमा ! " गौतम ! “ घम्मा नामेणं, रयणप्पभा गोत्तेणं" पडदा पृथ्वीनु नाम 'धर्मा' छ भने गोत्र २त्ना ' છે. ઈચ્છા અનુસાર કેઈ પણ પદાર્થને માટે જે નામ નક્કી કરવામાં આવે છે તેને નામ કહે છે, અને જે અન્વર્થક (અર્થપ્રમાણેનું) અભિધાન (नाम) 3.य छ तर मात्र हे छ. “ एवं जहा जीवाभिगमे पढमो नेरइय શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯

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