Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 741
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२३० २ ० ३ जयन्त्याः प्रश्नोत्तरवर्णनम् ७२७ , 3 कानां सर्वेषां सिद्धिं लहयमानत्वेऽपि अर्थ लोक स्तैः शून्यो न भविष्यति इति भावः । जयन्ती तत्र हेतुं पृच्छति - ' से केण खाइए णं अट्ठे णं भंते । एवं बुम्बइसविणं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति णो चेवणं भवसिद्धिय विरहिए लोए भविस्सर ? ' हे भदन्त ! तत्-अथ केन 'खाइएणं' इति वाक्यालङ्कारे पुनरर्थेवा देशीयः शब्दः, अर्थेन - केन हेतुना, एवमुच्यते यत् सर्वेऽपि खलु भवसिद्धिका जीवाः सेत्स्यन्ति, किन्तु नो चैव खलु भवसिद्धिकविरहतो लोको भविष्यतीति ? भगवानाह - ' जयंती ! से जहा नामए सभागाससेढी सिया, अणादीया, अणबग्गा, परिता परिवुडा' हे जयन्ति ! तत् यथानाम सर्वाकाशश्रेणीस्यात् कदा चिद् भवेत्, सा च श्रेणी अनादिका - आदिरहिता, अथ च अनवदग्रा - अनन्ताअन्तरहिता अथ च सा परिमिता, परिवृता - परितो वेष्टिता भवेत्, 'साणं परमाणु सिद्धिकों से शून्य हो जावेगा ? इसके उत्तर में प्रभु करते हैं-' णो इणडे सम' हे जयन्ति ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् समस्त भवसिद्धिक जीव सिद्धि को प्राप्त करनेवाले होंगे ही- फिर भी यह लोक उनसे शून्य - खाली नहीं रहेगा 'से केण खाइएण' अद्वेणं भंते । एवं बुच्चसवे विणं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति, णो चेवणं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्सइ' हे भदंत ! आप किस कारण से ऐसा कहते हैं कि सब भवसिद्धिक जीव सिद्धि को प्राप्त करेंगे, फिर भी यह लोक उनसे शून्य नहीं होगा ? इस जयन्ती के प्रश्न के उत्तर में प्रभु उससे कहते हैं-' जयंती ! से जहानामए सव्वागाससेढी सिया अणादीया, अणवदग्गा, परित्ता परिवुडा' हे जयन्ती ! मानलो कि इस सब आकाश की एक श्रेणी हो और वह आदि अन्त रहित हो, तथा दोनों तरफ महावीर अलुना उत्तर- " णो इणट्टे समठ्ठे " हे जयन्ती ! मेवु सांभवी શકતું નથી એટલે કે સમસ્ત ભવસિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરશે, એ વાત ખરી છે, છતાં પણ આ લેક ભવસિદ્ધિકાથી વિહીન નહી રહે. , भयन्ती श्राविमना अश्न- " से केण खाइएण अडेण भते ! एवं goesसव्वे विभवसिद्धिया जीवा सिन्झिस्संति, णो वेव गं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्स” हे भगवन् ! आप शा अरले मेवु । सघणा अवसि દ્વિક જીવા સિદ્ધિ પામશે, છતાં પણ આ લાક ભસિદ્ધિકાથી રહિત નહીં રહે? महावीर अनुना उत्तर- " जयंती ! से जहा नामए सव्वागास सेढी सिया अण. दीया, अणवदग्गा, परिता, परिवुडा" हे क्यन्ती ! धारी है या भामा આકાશની એક શ્રેણી થઈ જાય, તે માદિ અને અન્ત રહિત હાય, પરિમિત હાય અને ફરતી અનેક શ્રેણીએ વડે પરિવષ્ટિ (વીટળાયેલ) ડાય. सा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯


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