Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ ३०१ सू०४ शङ्खश्रावकारितनिरूपणम् १९९ संसारकान्तारेऽनुपर्यटति। 'तएणं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयमटुं सोचा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभउचिग्गा समणं भगवं महावीरं वंदंति, नमसंति' ततः खलु ते श्रमणोपासका श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिके-समीपे, एतमर्थ-पूर्वोक्तार्थ क्रोधादीनां कटुविपाकं श्रुत्वा, निशम्य. हृदि अवधार्य भीताः जन्ममरणेभ्य प्रस्त्रा:-त्रासयुक्ताः नरकादिदुःखेभ्यः, त्रासिताःघोरसंसारभयोद्विग्ना:-भवभयविह्वलाः सन्तः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते, नमस्यन्ति, 'वंदित्ता, नमंसित्ता, जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छंति' वन्दित्वा, नमस्यित्वा, यत्रैव शङ्खः श्रमणोपासकः आसीत , तत्रैव उपागच्छन्ति, 'उवागच्छित्ता संखं समणोवासगं वंदति, नमसंति,' उपागत्य, शङ्ख श्रमणोपासकं करके उन्हें बांधता है। 'तएणं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स ऑतियं एयमढे सोच्चा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभविग्गा समणं भगवं महावीर वंदंति, नमसंति' इसके बाद उन श्रमणोपासकों ने कषाय करने वाले जीवों की क्या स्थिति होती है ऐसा कथन श्रमण भगवान महावीर के मुख से सुना-तष वे क्रोधादि कषायों के कटुक विपाक को हृदय में अवधारण करके जन्ममरण से बहुत डर गये नरकादिकों के दुःखों से त्रस्त हो गये घोर संसारपरिभ्रमण से त्रास को प्राप्त हो गये इस प्रकार संसारभय से विह्वल बने हुए उन श्रमणोपासकों ने भगवान महावीर को वन्दना की, उन्हे नमः स्कार किया 'वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छंति' वन्दना नमस्कार करके फिर वे जहां श्रमणोपासक शंख
"तएण ते खमणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अतिय एयमहूँ सोच्चा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभउव्विग्गा समण भगव' महावीर' बंदति नमसंति" पाययुत वानी की स्थिति याय छ ? से श्रम स. વાન મહાવીરને મુખે શ્રવણ કરીને, અને ક્રોધાદિ કષાયના ભયંકર વિપાકને હદયમાં અવધારણ કરીને, તેઓ જન્મમરણના ભયથી વિહલ થઈ ગયા, નરકાદિના દુઃખના વિચારથી ત્રાસી ગયા, અને ઘોર સંસારાટવીમાં પરિભ્રમણ કરવું પડશે એવું જાણીને વ્યાકુળ બની ગયા આ પ્રકારે સંસારભયથી વિહલ થયેલા તે શ્રમણે પાસકોને, શંખશ્રાવક પર ક્રોધ કરવા માટે પસ્તા थवा साश्या तभो श्रम लगवान महावीर एनिमरा२४ा. "वंदित्ता, नमंसित्ता, जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छंति" महावीर प्रभुने - नमः४२ ४शन, या शम श्रमणोपास मेटी तो त्या तया गया. "उवागच्छित्ता संख समणोवासग वंदति, नमसंति" या ने तभए श्रमाया.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯