Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 726
________________ ७१२ भगवतीने तस्मिन् समये, स्वामी-महावीरः समवमृतः यावत्, समवसृतं भगवन्तं वन्दितं नमस्यित, धर्मकयां श्रोतुं च विनयेन प्राञ्जलिपुटा पर्षत् पर्युपास्ते, 'तएणं से उदायणे राया इमीसे कहाए लढें समाणे हट्टतुट्टे कोडुबियपुरिसे सहावेइ, सदावेत्ता, एवं वयासी'-ततः खलु स उदायनो राजा अस्याः महावीरस्य समवसरणरूपायाः कथायाः लब्धार्थ:-ज्ञातार्थः सन् हृष्टपुष्टः कौटुम्बिकपुरुषान्-आज्ञाकारि सेवकान् शब्दयति-आहयति, शब्दायित्वा- आहूय, एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेणअवादी-'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! को संबि नरि सभितरवाहिरियं एवं जहा कूणिो तहेव सन्ध जाव पज्जुवालइ' भो देवानुप्रियाः ! क्षिप्रमेव-शीघ्रमेय, कौशाम्बी नगरी साभ्यन्तरवाह्याम्-अभ्यन्तर बहिः सहिताम् एत्र-पूर्वोक्तरीत्या, पधारे हुए प्रभु को वन्दना करने के लिये और उन्हें नमस्कार करने के लिये तथा उनसे धर्मोपदेश सुनने के लिये परिषदा अपने २ स्थान से निकली और प्रभु के पास पहुँच कर बडे विनय से दोनों हाथ जोड़कर वह उनकी पर्युपासना करने लगी 'तएणं से उदायणे राया इमोसे कहाए लढे समाणे हतुट्टे कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सहावित्ता एवं वयासी' जब उदायन राजा को महावीर स्वामी के आने का समाचार ज्ञात हुआ-तब बहुत अधिक हर्षित एवं संतुष्ट चित्त हुआ और उसी समय अपने कौटुम्बिक आज्ञाकारी पुरुषों को बुलाया बुलाकर फिर उनसे उसने इस प्रकार कहा-'खिपामेव भो देवाणुप्पिया! कोसंवि नयरिं सभितरवाहिरियं एवं जहा कूणिओ तहेव सव्व जाव पज्जुवासह' हे देवानुप्रियो ! तुम लोग जितने जल्दी से हो सके उतनीजल्दी ચન્દ્રાવતરણ ચિત્યમાં પધાર્યા પ્રભુને વંદણુનમસ્કાર કરવાને તથા ધર્મોપદેશ સાંભળવાને માટે લોકોને સમૂહ પિતપોતાને ઘેરથી નીકળે. પ્રભુની પાસે બને હાથ જોડીને ઘણાજ વિનયપૂર્વક તેમણે તેમની પર્યું પાસના કરી. "तएणं से उदायणे राया इमीसे कहाए ल समाणे हद्वतुढे कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सहावित्ता एवं वयासी' या यन २० भावीर પ્રભુના આગમનના સમાચાર જાણ્યા, ત્યારે તેને અત્યંત હર્ષ અને સંતોષ થયો એજ વખતે તેણે પોતાના કૌટુંબિક પુરુષને (અજ્ઞાકારી પુરુષને) मासापान मा प्रमाको माज्ञा भाषी-“ खिपामेव भो देवाणुप्पिया! कोसंविं नयरिं सम्भितरबाहिरियं एवं जहा कूणिो तहेव सव्व जाव पज्जुवासह" 3 દેવાનુપ્રિયે! તમે બનતી ત્વરાથી કૌશામ્બી નગરીના બાહ્યાભાગેને તથા અંદ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯

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