Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 729
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ०२ सु०२ उदायनवर्णनम् ७१५ त्रयस्त्रिंशत्तमोद्देशके देवानन्दा यावत्-ऋषभदत्तस्य वचनं प्रतिशृणोति, तथैव इव. मपि प्रतिशृणोति-स्वीकरोति, 'तएणं सा मियावती देवी कोडुंबियपुरिसे सहावेह, सदावित्ता, एवं वयासी' ततः खलु मृगावती देवी कौटुम्बिकपुरुषान् आज्ञाकारि सेवकान् शब्दयति-आह्वयति, शब्दयित्वा-आहूय, एवं- वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत-'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! लहुकरणजुत्तजोइय जाव धम्मियं जाणप्प. वर जुत्तामेव उवट्ठवेह, जाव उबट्ठवेंति, जाव पच्चप्पिणंति' भो देवानुप्रियाः ! क्षिपमेव-शीघ्रमेव, लघुकरणयुग्ययोजित यावत्-लघुकरणौ-वेगपूर्वकगमनवन्तौ यौ युग्ययोजितौ यावत्-अत्यन्तमसिद्धौ वृषभौ, ताभ्यां वृषभाभ्यां युक्तमेवयोजितमेव, धार्मिकम् , यानपवरम्-श्रेष्ठवाहनम् , उपस्थापयत-सज्जीकृत्य समानयत, ततः खलु यावत्-ते कौटुम्बिापुरुषाः तथाविधलघुकरणयुग्ययोजितवृषाभ्यां युक्तमेव धार्मिकं यानप्रवरम् , उपस्थापयन्ति तथा मृगावत्या आज्ञप्ति जयन्ती के वचन सुनकर मृगावती देवी ने उसके वचन को ३३ में उद्देशक में वर्णित ऋषभदत्त के वचन को देवानन्दा के समान स्वीकार कर लिया 'तएणं सा मियावती देवी कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी' इसके बाद मृगावतो देवी ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुलाकर उनसे ऐसा कहा-'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! लहुक. रणजुत्तजोइय जाव धम्मियं जाणप्पवर जुत्तामेव उवट्टवेह' हे देवानुप्रियो ! तुम लोग शीघ्र ही वेग पूर्वक गतिशाली दो प्रसिद्ध बैलों से युक्त धार्मिक श्रेष्ठ वाहन को सज्जित करके उपस्थित करो तब उन कौटु. म्बिक पुरुषों ने मृगावती देवी के कहे अनुसार वेगगतिशाली दो बैलों से योजित करके धार्मिक श्रेष्ठ वाहन को उपस्थित कर दिया इस प्रकार से करके उन्हों ने फिर मृगावती देवी को इसकी सूचना दे दी પ્રકારનાં વચનને દેવાનંદાએ સ્વીકાર કર્યો હતો, એજ પ્રમાણે જયન્તીનાં વચનેને મૃગાવતી દેવીએ પણ સ્વીકાર કર્યો (નવમાં શતકના ૩૩માં ઉદ્દેશકમાં દેવાનંદાએ કેવા વચનો દ્વારા ઋષભદત્ત બ્રાહ્મણનાં વચનેને સ્વીકાર ४यों , ते मतान्यु छ) “तएणं सा मियावई देवी कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सहावित्ता एवं वयासी" त्या२ माह भृगापती वास माज्ञारी पुरुषान मायावी ॥ प्रमाणे यु:-" खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया बहुकरण जुत्त जोइय जाव धम्मिय जाणप्पवर जुत्तामेव उववेह" वानुप्रिये! तमे मनीश તેટલી વરાથી, ઘણાં જ ઝડપી ગતિવાળા એવા શ્રેષ્ઠ બળદ જોડીને ધાર્મિક શ્રેષ્ઠ યાન (રથ હાજર કરો મૃગાવતી દેવીની આજ્ઞા પ્રમાણે તેમણે ઘણાં જ ઝડપી બે શ્રેષ્ઠ બળદે જોડેલું ધાર્મિક શ્રેષ્ઠ યાન મહેલને દ્વારે ઉપસ્થિત શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯

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