Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 717
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २० १२ उ. १०४ शङ्खधावकचरितनिरूपणम् ७०३ सत्यमेवेति यावत्-श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते, नमस्यित्वा, संयमेन तपसा आत्मानं भावयन् विहरति-तिष्ठति ॥सू० ४।। ॥ इति श्री विश्वविख्यात-जगदालभ-प्रसिद्धवाचक पञ्चदशभाषा____कलितललितकलापालापकाविशुद्धगधपधनकान्थनिर्मापक वादिमानमर्दक श्री शाहू छत्रपति कोल्हापुरराजप्रदत्त'जैनाचार्य' पदभूषित-कोल्हापुरराजगुरुबालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर -पूज्य श्री घासीलालबतिविरचितायो श्री "भगवतीसूत्रस्य" प्रमेयचन्द्रिकाख़्यायां व्याख्यायां द्वादशशतके प्रथमोद्देशकः समाप्तः॥१२-१॥ यथार्थ हीहै, हे भदन्त ! आपके द्वारा कहा गया यह सब विषय यथार्थ ही है। इस प्रकार कह कर वे गौतम अन्त में यावत् संयम और तपसे आत्मा को भावित करते हुए अपने स्थान पर विराजमान हो गये ॥सू०४॥ जैनाचार्य श्री घासीलालजी महाराज कृत " भगवतीमत्र" की प्रमेय. चन्द्रिका व्याख्याके बारहवें शतक का पहला उद्देशक समास ॥१२-१॥ આ પ્રમાણે કહીને ભગવાનને વંદણાનમસ્કાર કરીને, સંયમ અને તપથી આત્માને ભાવિત કરતા, એવા ગૌતમ સ્વામી પિતાના સ્થાન પર વિરાજ. માન થઈ ગયા //સુત્રા નાચાર્ય શ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજ કૃત “ભગવતીસૂત્ર”ની પ્રમેયચન્દ્રિકા વ્યાખ્યાના બારમા શતકને પહેલે ઉદ્દેશક સમાપ્ત ૧૨-૧ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯

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