Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस
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भगवं महावीरं वंदंति, नमसंति' उत्याय, श्रमणं भगवन्तं महावीर वन्दन्ते, नमः स्यन्ति, 'वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छंति' वन्दित्वा नमस्यित्वा, यत्रैव शङ्खो नाम श्रमणोपासकः आसीत् , तत्रैव-उपागच्छन्ति' 'उवागच्छित्ता संखं समणोवासगं एवं वयासी'-उपागत्य श श्रमणोपासकम् , एवं-वक्ष्यमाणपकारेण अवादिषु:-'तुम देवाणुप्पिया! हिज्जा अम्हेहि अप्पणा चेव, एवं बवासी'-भो देवानुप्रियाः । त्वम् खलु खः-गतदिवसे अस्माकम् , आत्मनैव-स्वयमेव, एवं-वक्ष्यमाणपकारेण अवादीः यत् 'तुम्हे णं देवाणुप्पिया! विउलं असण जाव विहरिस्सामो' भो देवानुपियाः! यूयं खलु विपुलम् अशनं यावत् पानं खादिम स्वादिमम् उपस्कारयत, वयं खलु तत् विपुलम् अशनादिकम् आस्वादयन्तो विस्वादयन्तः परिभुञ्जानाः परिभाजयन्तः पाक्षिकं पौषधं प्रतिजावे अपनी ही उत्थान शक्ति से उठे, ' उट्टेसा समणं भगवं महावीर वंदति, नमसंति' उठकर उन्हों ने मण भगवान् को वन्दना की
और नमस्कार किया, 'वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छंति' बन्दना नमस्कार करके फिर वे वहां गये जहां श्रमणोपासक शंख बैठे थे 'उवागच्छित्ता संख समणोवासगं एवं वयासी' वहां अर्थात् भगवान् के समीप बैठे थे वहां जाकरके उन्होंने उस श्रमणोपासक शंख से ऐसा कहा-'तुम देवाणुप्पिया! हिज्जाअम्हे हि अप्पणा चेव एवं क्यासी' हे देवानुप्रिय ! गतदिवस आपने हमसे अपने आप ऐसा कहा था कि 'तुम्हे णं देवाणुप्पिया! विउलं असणं जाव विहरिस्सामो' हे देवानुप्रियो ! तुम लोग विपुल अशन, पान, खादिम एवं स्वादिम आहार को तैयार कराओ। हमलोग उस तभनी त्यानशतिथी या. “ उद्वेत्ता समण भगव' महावीर वंदति, नमसंति" हीनतमय श्रम नगवान महावीरने । ४री मने नमः४१२
र्या "वंदित्ता, नमंसित्ता जेणेव संखे समणोवासए सेणेव उवागच्छंति" त्यार मान्यां शमश्राव मेहता, त्यां तो गया. “उवागच्छित्ता संखं समणोवासगं एवं वयासी" मेटले है भावी२ प्रभुनी सभीष मेहता
आपनी पासे ४४२ तेमयो तर प्रमाणे ४." तुम देवाणुप्पिया ! हिज्जा अम्हे हि अप्पणा चेव एवं वयासी" देवानुप्रिय ! से माये अमन में प्रयु तु , “ तुम्हेण देवाणुप्पिया ! विउल असण जाव विहरिस्सामो"
હે દેવાનુપ્રિયે ! તમે વિપુલ અશન, પાન, ખાધ અને સ્વાદ રૂપ ચારે પ્રકારને આહાર તૈયાર કરાવે આપણે બધાં ભેગા મળીને તે વિપુલ અશ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૯
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