Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 683
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१२ उ० १ ० २ शङ्खश्रावकवरितनिरूपणम् ६६१ श्रमणोपासकस्य एतमर्थ-पूर्वोक्तार्थ, विनयेन प्रतिशृण्वन्ति-स्वीकुर्वन्ति, 'सएणं तस्स संखस्स समणोवासगस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था' ततः खलु तस्य शङ्खस्य श्रमणोपासकस्य अयमेतद्रूपः-वक्ष्यमाणस्वरूपः, आध्यात्मिकःआत्मगतः, यावत्-चिन्तितः, कल्पितः, प्रार्थितः, मनोगतः संकल्पः समुदपयत्तसमुत्पन्नः 'नो खलु मे सेयं तं विउलं असणं जाव साइमं आसाएमाणस्स, विसाएमाणस्स, परिभुजेमाणस्स परिभाएमाणस्स पक्वियं पोसहं पडिजागरमाणस्स विहरित्तए' नो खलु-नैव किल, मम श्रेयः-श्रेयस्करं तत् विपुलम् अशनम् , यावत्पानं खादिम, स्वादिमम् , आस्वादयन्तः, विस्वादयन्तः, परिभुञानस्य, परि. भाजयतः, पाक्षिकं पौषधं प्रतिजाग्रतः-अनुपालयतो विहर्तुम् , अशनादिकं परिभुञानस्य पाक्षिक पौषधम् अनुपालयतो मम विहत नो श्रेयो वर्तते इति भावः । अपितु-'सेयं खलु मे पोसहसालाए पोसहियस्स बंभयारिस्स उम्मुक्कमणिमुवनस्स' श्रेयः खलु मम यत् पौषधाशालायां, पौषधिकस्य-पौषधनुपालयतः, ब्रह्मचारिणः कहा- तब उन श्रमणोपासकों ने उसके इस कथन रूप अर्थ को विनय पूर्वक स्वीकार कर लिया 'तएणतस्स संखस्स समणोवासगस्स अयमेयारूवे अज्झस्थिए जाव समुप्पज्जित्था' इसके बाद ही श्रमणोपासक उस शंख के मन में ऐसा चिन्तित, कल्पित, प्रार्थित संकल्प उत्पन्न हुआ 'नो खलु मे सेयं तं विउलं असणं जाव साइम आसाएमाणस्स विसाएमाणस्स परिभुजेमाणस्स पक्खियं पोसह पडिजागरमाणस्स विहरित्तए' कि मुझे इस प्रकार से पाक्षिक पौषध करनायोग्य नहीं हैचारों प्रकार का आहार करता रहूं और पाक्षिक पौषध भी करतार अपितु-'सेयं खलु मे पोसहसालाए पोसहियस्स बंभयारिस्स उम्मुक्क. मणिसुवन्नस्स' ऐसा करना ही उचित है कि मैं पौषधशाला में थे, यपू' १२ ४. “ तएणं तस्स संखस्स समणोवासगरम अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था" त्या२ मा त श श्रावना भनमा माघारना माध्यामि, यिन्तित, हिपत भने प्राति स४६५ अपन 22-" ना खलु मे सेयं तं विउल असणं जाव साइमं आसाएमाणस्स विसाएमाणस्स परिमुंजेमाणस्स परिभाएमाणस्स पक्खियं पोसह पडिजागरमाणस्स विहरित्तए" આ પ્રકારે પાક્ષિક પૌષધ કરવો તે મારે માટે ગ્ય નથી. એટલે કે ચારે પ્રકારને આહાર ઉપર કહ્યા પ્રમાણે ખાઈને પૌષધ કરવાથી भा३18 श्रेय थानु नथी. "सेयं खलु मे पोसहसालाए पोसहियस्स वंभयारिस्स उम्मुकमणिसुवन्नस्स" ५२न्तु मारे मोटे मे अथित छ है . શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯

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