Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 685
________________ अमेयचन्द्रिकाटीका श० १२ उ०१ ० २ शलभाषकचरितनिरूपणम् ६७१ नगरी आसीत् , यौव स्वकं गृहमासीत् , यौव उत्पला नाम श्रमणोपासिका आसीत् , तत्रैव उपागच्छति, 'उवागच्छित्ता, उप्पलं समणोवासियं आपुच्छ।' उपागत्य, उत्पला श्रमणोपासिकाम् आपृच्छति, 'आपुच्छित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छई' आपछय, यत्रैव-पौषधशाला आसीत् , तत्रैव-उपागच्छति 'उबागच्छित्ता पोसहसालं अणुरविसइ' उपागत्य, पौषधशालाम् अनुमविशति, 'अणुपविसित्ता, पोसहसालं पमज्जइ' अनुपविश्य, पौषधशालां प्रमार्जयति ‘पमज्जित्ता उच्चारपासवणभूमि पडिले हेइ' पौपधसालां प्रमृज्य, उच्चारप्रस्रवणभूमिम् पविले खयति, 'पडिलेहित्ता, दब्भसंथारंग संथरेई प्रतिलेख्य, दर्भसंस्तारकं संस्तगाति-सम्यग् यतनया विस्तारयति 'संथरित्ता, दब्भसंथारग दुरूहइ' संस्तीर्य दर्भसंस्तारकम् आरोहति-दर्भसंस्तारकोपरि उपविशतीत्यर्थः दुरूहित्ता पोसहसालाए अपना घर था और उसमें भी जहां वह श्रमणोपासिका उत्पला थी वहां आया 'उवागच्छित्ता उप्पलं समणोवासियं आपुच्छइ' वहां आकर के उसने अमणोपासिका उत्पला से पूछा-'आपुच्छित्सा जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छई पूछकर फिर वह जहाँ पर पौषधशाला थी वहां पर गया 'उवागच्छित्ता पोसहसाल अणुपविसई' वहां जाकर के उसने पौष. घशाला में प्रवेश किया 'अणुरविसित्ता पोसहसाल पमज्जइ' वहां प्रवेशकर उसने पौषधशाला का प्रमार्जन किया 'पमज्जित्सा उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेई' प्रमार्जन करके फिर उसने उच्चारपासवणभूमि की प्रतिलेखना की परिलेहित्ता दम्भसंथारगं संथरेइ' प्रतिलेखना करके फिर उसने दर्भका संथारा विछाया 'संथरित्ता दन्भसंथारगं दरूहइ' दर्भका संथारा विछाकर फिर वह उस दर्भ के संथारे पर बैठ નગરીમાં આવેલા પોતાના ઘર તરફ આગળ વધ્યો પિતાના ઘરમાં પ્રવેશ शरत तनी पत्नी ७५सा प्राविहानी पासे गया. “ उवागचित्ता उप्पल पमणोवामियं आपुच्छ” त्यो ४४२ तव तेने पातानासन पातरी आपुच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छ" त्यार 10 परमत न्यi पोष५ ती त्यो त भयो. "उवागच्छिता पोसहसाल अणुपविसई" त्याने ते पौषमा प्रवेश ये. "अणुपविसित्ता पोसहसा पम ज्जा" मा प्रवेश शीन तो पोषणाने ५० “पमज्जित्ता उच्चारपासणभूमि पडिलेहे" पौषशाजाने फूलनेते या२पास मूभिनी प्रतिवमना ७१. “ पडिलेहिता" प्रतिमना यो मा त "दन्भसंभारगं संथरेइ' EMI Aथा। (छानु) 41०ये. “ संथारिता दम्भसंथारगं दूलहइ" શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯

Loading...

Page Navigation
1 ... 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760