Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 686
________________ ६७२ भगवती सूत्रे पोसहिए वंभयारी जाव पक्खियं पोसई पडिजागरमाणे विहरई' आरुह्य, पौषधशालायां पौषधिकः - पौषधव्रतधारी, ब्रह्मचारी यावत् उन्मुक्तमणिसुवर्णः, व्यपगतमालावर्णकविलेपनः निक्षिप्तशस्त्रमुशलः, एकोऽद्वितीयः, दर्भसंस्तारकोपगतः सन् पाक्षिकं - पक्षेमचं पाक्षिकं पौषधं - पौषघव्रतम्, प्रतिजाग्रत् - अनुपालयन् विहरतितिष्ठति । 'तरणं ते समणोवासगा जेणेव सावस्थी नयरी, जेणेव साई गिहाई तेणेत्र उवागच्छंति' ततः खलु ते श्रमणोपासकाः, यत्रैव-श्रावस्ती नगरी आसीत्, यंत्र-स्वानि स्वकीयानि गृहाणि । आसन्, तत्रैत्र उपागच्छन्ति, 'उवागच्छित्ता विउले असणं पाणं, खाइमं साइमं उचक्खडावे 'ति' उपागत्य विपुलं प्रचुरम्, अशनं, पानं, खादिमं, स्वादिमम् उपस्कारयन्ति निर्वापयन्ति । 'उबक्खडा वेत्ता - अन्नमन्नं सद्दा गया 'दुरुहिता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारीजाव पक्खियं पोस पडिजागरमाणे विहरइ' संथारे पर बैठ कर पौषधशाला में पौषधव्रत को धारण किये हुए वह ब्रह्मचर्य को पालता हुआ यावत्-मणि और सुवर्ण का त्यागी, माला और विलेपन का परिहार करनेवाला, शस्त्र एवं मुशलसे विरक्त बना हुआ, अकेला एवं दर्भ के आसन पर बैठा हुआ पाक्षिकपौषध का पालन करने लगा 'तणं ते समणोवासगा जेणेव सावस्थी नयरी, जेणेव साई गिहाई तेणेव उवागच्छंति' इसके बाद वे श्रमणोपासक जहां श्रावस्ती नगरी थी और उसमें भी जहां अपने २ घर थे वहां पर आये 'उनागच्छित्ता विउलं असणं पाण खाइम' साइम' उवक्खडावेंति' वहाँ आकर के उन्होंने विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार को तैयार करवाया - 'उवक्खडाअथा। मछावीने ते सधारा पर विशन्ति थर्ध गये। " दुरुहिता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी जाव पक्खियं पोचह पडिजागरमाणे विहरइ " मा રીતે સથારા પર બેસીને પાષધશાળામાં પૌષધવ્રતને ધારણ કરીને, બ્રહ્મચ यनुं पालन करता था, मणि, सुवर्थ माहिना त्यागपूर्व है, भाता भने विसे. પનના પરિત્યાગપૂર્ણાંક, મુશલ આદિ શઓના ત્યાગપૂર્વક, તે શખ શ્રાવક દના આસન પર બેસીને એકાન્તમાં પૌષધાપવાસનું પાલન કરવા साग्यो " तएण वे समणोवाखगा जेणेव सावत्थी नयरी, जेणेव साई गिहाई तेणेव उवागच्छति " पेसा અન્ય શ્રાવકે પશુ શ્રાવસ્તી નગરી તરફ આગળ વધ્યા અને પોત પોતાને ઘેર પહોંચી ગયા. " उवागच्छिता विचल असणं पाण' खाइम' साइम' उवक्खडावेंति " त्यांच्या तेभाये वियुद्ध પ્રમાણુમાં અશન, પાન, ખાદિમ અને સ્વાદિમ રૂપ ચતુર્વિધ અઢાર તૈયાર ४राव्या, "वक्खडावेत्ता अन्नमन्न सदावेंति " या प्रहारे भाडार तैयार શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯

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