Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० १ ० १ शङ्खश्रावकचरितनिरूपणम्
६५९
"
समासगा इमी से जहा आलभियाए जाव पज्जुवासंति' ततः खलु ते श्रमणोपासकाः अस्याः कथायाः लब्धार्याः - गृहीतार्थाः यथा - आलभिकायां यावत्वगर्यां पूर्व प्रतिपादितं तथैवात्रापि प्रतिपत्तव्यम्, तथा च हृष्टतुष्टः सन्तः चिन येन प्राञ्जलिपुटाः भगवन्तं पर्युपास्ते । 'तरणं समणे भगवं महावीरे तेसि समणोवासगाणं तीसे य महतिमहालयाए धम्मका जाव परिसा पडिगया ' ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरः तेषां श्रमणोपासकानां तस्यां च महातिमहालयाय पर्वदि धर्मकथा यावत् धर्मकथां श्रश्वा पर्षत् प्रतिगता । ' तरणं ते समणोवासना समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा निसम्म डडतुड्डा समण भगवं उसने उनकी पर्युपासना की 'तणं ते समणोपासना इमीसे कहाए जहा आल मियाए जाब पज्जुवासंति' उन श्रमणोपासकों को जब महावीर प्रभुके आगमनरूप कथा की खबर पड़ी तब वे भी सबके सब प्रभु को वन्दना करने के लिये और धर्मोपदेश सुनने के लिये अपने २ स्थान से निकल कर प्रभु के पास आये सो जैसा कथन आलभिका नगरी के श्रमणोपासकों के विषय में किया गया है-बैसा ही कथन यहां पर भी कर लेना चाहिये तथा प्रभु के दर्शनादि करके वे सबके सब बहुत आनन्दित हुए और संतुष्ट चित्त हुए बड़े विनय से उन्हों ने प्राञ्जलिपुट होकर प्रभु की पर्युपासना की 'तणं समणे भगवं महावीरे तेसि समणोवासगाणं तीसे य महति महालया धम्मकड़ा जाव परिसा परिगया' इसके बाद श्रमण भगवान् महावीर ने उन श्रमणोपासकों को उस अतिविशाल परिषदा में धर्मकथा सुनायी धर्मकथा सुनकर परिपदा विसर्जित हो गई 'तएणं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ
પટુ પાસના કરવામાં આવી,' આ કથન પર્યન્તનું સમસ્ત કથન અહીં ગ્રહણ કરવું ले. " तरणं ते समणोवागा इमीसे कहाए जहा आळभियाए जाव पज्जुवासंति " धर्मोपदेश सांभजवाने तथा वडा नमस्कार करवाने भाटे गयेली તે પરિષદનું વર્ણન આલભિકા નગરીના શ્રમણેાપાસકના વિષયમાં આગળ કર્યો અનુસાર જ નહીં પણ ગ્રહગુ કરવુ જોઈ એ. પ્રભુનાં દર્શીન કરીને તેમને ઘણેા જ આનંદ અને સંતાપ થયે તેમણે ખન્ને હાથ જોડીને પ્રભુની પ્યુ. पासना पुरी, “तएण समणे भगव महावीरे तेसिं समणोवास गाणं तीसे य परिगया " त्यार माह श्रभाशु लगवान પ્રખાને ધમ કથા સ'ભળાવી ग " तरणं ते समणोबासगा सोच्या निसम्म हट्ठा भ्रमण
महति महालया धम्मका जाव परिसा મહાવીર શ્રમણે પાસકાની તે અતિ વિશાળ धर्म या सांलजीने प्रभा विसति थ समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯