Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे सकसि सीहासणंसि, तुडिएणं सद्धि सेसं जहा चमरस्स' हे भदन्त ! प्रभुःसमर्थः खलु किं शक्रो देवेन्द्रो देवराजः, सौधर्मे कल्पे, सौधर्मावतंसके विमाने, सभायां सुधर्मायां, शक्रे सिंहासने त्रुटिकेन सार्द्ध दिव्यान भोगभोगान् भुञ्जाना विहर्तुम् ? भगवानाह-शेषयथा चमरस्य प्रतिपादितं तथैव प्रतिपत्तव्यम् नवरं परियारो जहा मोउद्देसए नवरं चमरापेक्षरा शक्रस्य वक्तव्यतायां विशेषस्तु केवलं परिवारोऽवसेयः स च शक्रपरिवारो यथा मोकाद्देशके तृतीयशतकस्य प्रथमो. देश के प्रतिपादितस्तथैवात्रापि प्रतिपत्तव्यः । स्थविराः पृच्छन्ति-'सकस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो कइ अग्गम हिसीओ ? पुच्छा' भदन्त : सभाए सुहम्माए, सकसि सीहासगांसि, तुडिएण सद्धिं सेसं जहा चमरस्त' हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज शक्र सौधर्मकल्प में सौधर्मावत. मक विमान में बैठकर सुधर्मारभा के बीच क्या अपने पूर्वोक्त त्रुटिक के साथ भोग भोग सकता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे आर्यो! जैमा पहिले चमर के संबंध में कहा गया है वैसा ही बाकी का कथन यहां पर जानना चाहिये. अर्थात् सुधर्मा सभामें भोग नहीं भोग सकता है 'नवरं परियारो जहा मोउद्देसए । परन्तु चमरकी वक्तव्यता की अपेक्षा शक्र की वक्तव्यता में परिवार को लेकर अंतर आता है शक्र का परिवार तृतीय शतक के प्रथम उद्देशकमें जैसा कहा गया है वैसा ही यहां पर समझना चाहिये। अब स्थविर प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'सकस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महार ण्णो
स्थविशना प्रश्न-“पभूणं भंते ! सक्के देविदे देवराया, सोहम्मे कप्पे, सोहम्मवडेंसए विमाणे, सभाए सुहम्माए, सर्कमि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धिं, सेसं जहा चमरस्स" मावान् ! हेवेन्द्र, ३१२०४ , सौधम ४६५मां, सीधाવતંસક વિમાનની સુધર્મા સભામાં પોતાના શક નામના સિંહાસન પર વિરાજમાન થઈને પિતાના ત્રુટિકની (૧૨૮૦૦૦ દેવીઓના પરિવારની) સાથે ભોગો ભોગવી શકે છે ખરા ?
મહાવીર પ્રભુને ઉત્તર-હે આર્યો! ચમરના પ્રકરણમાં કહ્યા પ્રમાણે જ उत्तर मी ५ सभा . “ नवर' परियारो जहा मोउद्देसए " ५२न्तु यम. ૨ના પરિવાર કરતાં શક્રના પરિવારમાં જે વિશેષતા છે, તે ત્રીજા શતકના પહેલા ઉદ્દેશામાં કહ્યા પ્રમાણે સમજવી. (મકા નગરીમાં આ ઉદ્દેશાની પ્રરૂપણ થઈ હતી, તેથી આ ઉદ્દેશાને મકાઉદ્દેશક પણ કહે છે.)
२थविशने। प्रश्न-“ सकस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णा सोमस्स महारण्णो
श्री. भगवती सूत्र : ८