Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १० उ० ६ सू० १ देवावस्थानविशेषनिरूपणम् २०३ प्रोक्तं तथैव सर्व वाच्यम्-कियपर्यन्तमित्याह-'जाव आयरक्खत्ति' यावत् आत्मरक्षकदेववर्णन तावत्पर्यन्तमत्र वाच्यम् । शकस्य स्थितिविषये प्राह- 'दो सागरोवमाई ठिई द्वे सागरोपमे स्थितिः शक्रस्य कथनीयेति । शक्रस्य मायः सर्व वर्णनं राजपनीयसूत्रोक्तमूर्याभदेववदेव विज्ञेयमिति भावः। गौतमः पृच्छति'सकेणं भंते ! देविंदे देवराया के महिडिए जाव के महा सोक्खे ?' हे भदन्त ! शक्रः खलु देवेन्द्रो देवराजः किं महर्दिको यावत्-कि महाद्युतिकः, किं महानुभागः,कि महायशाः, किं महाबलः, किं महासौख्यो वर्तते ? भगवानाह-'गोयमा! महिडिए जाव महासोक्खे' हे गौतम ! शक्रो देवेन्द्रो देवराजो महद्धिको यावत् महाद्युतिकः, अर्चनिका का वर्णन किया गया है वैसा ही इन सब का वर्णन यहां शक के विषय में भी कर लेना चाहिये 'जाव आयरक्खत्ति' यह सब वर्णन आत्मरक्षक देव वर्णन तक वहां किया गया है सेो यहां पर भी इतने कथन पर्यन्त ही वर्णन करना चाहिये । 'दो सागरोवमाइं ठिई' शक्र की दो सागर की स्थिति कही गई है। तात्पर्य सूत्रकार का ऐसा है कि राजप्रश्नीय सूत्र में जैसा वर्णन सूर्याभदेव का किया गया है-वैसा ही वर्णन प्रायः सब का सब शक्र का भी है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं'सक्केण भंते! देविंदे देवराया के महिडिए जाव के महासेोक्खे' हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज शक्र कितनी बड़ीभारी ऋद्धिवाला है ? कितनी बड़ी द्युतिवाला है ? कितने बड़े प्रभाववाला है ? कितने बड़े यशवाला है ? कितने बड़े बलवाला है ? और कितने बड़े सुखवाला है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! महिड्डिर जाव महासाक्खे' हे गौतम ! देवेन्द्र छ मे १ १ - 311 At२ महिना विषे ५९ समपु. “ जाव आयरक्खत्ति" ते समरत न आत्मरक्ष वाना वन पर्यन्त मही' ५५ ७५ ४२ मे. “ दो सागरोवमाई ठिई" शनी स्थिति (त દેવકનું આયુષ્ય) બે સાગરોપમનું કહ્યું છે. આ સઘળા કથનનો ભાવાર્થ એ છે કે રાજકશ્રીય સૂત્રમાં સૂર્યાભદેવનું જેવું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ વર્ણન શકનું પણ સમજવું જોઈએ.
गौतम स्वामीना प्रश्न-“ सकणं भंते ! देविंदे देवराया के महिइढिए जाव के महासोक्खे ?" उ मापन केन्द्र १२००१ ४ वी महामिने મહાઘતિવાળો છે ? તે કે પ્રભાવશાળી છે? તે કેવો મહાયશવાળે છે? તે કે મહાબળસંપન્ન છે? તે કેવો મહાસુખસંપન્ન છે?
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯