Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस्त्रे भगवानाह-'गोयमा! णो मण मोगी, णो वयजोगी, कायजोगी वा, कायजोगिणो वा १२' हे गौतम ! उत्पलस्था जीवाः नो मनोयोगिनो भवन्ति, नो वा वचोयोगिनो भवन्ति, अपितु उत्पलस्य एकपत्रतायाम् जीवस्य एकत्वात् काययोगी भवति, द्वयादिपत्रतायां तु जीवानामनेकत्वात् काययोगिनो वा भवन्ति । इति द्वादशं योगद्वारम् १२॥ ____ अथ त्रयोदशमुपयोगद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति-'ते णं भंते ! जीवा किं सागारोवउत्ता, अणागारोवउत्ता?' हे भदन्त ! ते खलु उत्पलस्था जीवाः किं साकारोपयुक्ताः भवन्ति ? किं वा अनाकारोपयुक्ताः भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा ! सागारोवउत्तेवा, अणागारोवउत्तेवा, अट्ट भंगा १३' हे गौतम ! उत्पलस्य एकपत्र. तायां जीवस्य एकत्वात् उत्पलस्थो जीवः साकारोपयुक्तो वा भवति, १ अनाकारोप्रभु कहते हैं- गोयमा! णो मणजोगी, णो वयजोगी, कायजोगी वा कायजोगिणो वा' हे गौतम! उत्पलस्थ वे जीव न मनोयोगी होते हैं, न वचनयोगी होते हैं किन्तु काययोगी होते हैं। उत्पल की एकपत्रावस्था में वर्तमान एक जीव कायजोगी होता है और उत्पल को अनेक पत्रावस्था में वर्तमान अनेक जीव सब काययोगवाले होते हैं । यह १२ वां योगद्वार है। ___अब गौतम तेरहवें उपयोगद्वार को आश्रित करके प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' तेणं भंते! जीवा किं सागारोवउत्ता, अणागारोवउत्ता' हे भदन्त ! उत्पलस्थ वे जीव क्या साकारोपयोगवाले होते हैं अथवा अनाकारोपयोगवाले होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा? सागारोव उत्ते वा अणागारोवउत्ते वा अट्ठभंगा' हे गौतम! उत्पलस्थ वे जीव साकायोपयोगवाले भी होते हैं और अनाकारोपयोगवाले भी होते
मडावीर प्रसुन उत्तर- गोयमा! णो मणजोगी, णो वयजोगी, काय जोगी वा कायजोगिणा वा" गोतम! G५सस्थ ते मनाया जाता નથી, વચનગી પણ હોતા નથી, પરંતુ કાયાગી હોય છે. ઉત્પલની એક પત્રાવસ્થામાં ઉ૫લસ્થ એક જવ કાયયેગી હોય છે અને તેની અનેક પત્રાવસ્થામાં તેમાં રહેલાં બધાં જ કાયમી હોય છે. ૧૨
तरमा पयोद्वानी ५३५५। गौतम स्वामीना प्रश्न-" तेणं भंते ! जीवा किसागारोव उत्ता, अणागारोवउत्ता?" भगवन् ! ५स्थत શું સાકારપગવાળા હોય છે ? કે અનાકારે પગવાળા હોય છે?
महावीर प्रभुना उत्तर- 'गोयमा ! सागारोवउत्ते वा, अणागारोवउत्ते ?" वा अट भंगा" है गौतम ! पक्षस्थ वे सापयोग ५० डाय छ અને અનાકારો પગવાળા પણ હોય છે. એટલે કે ઉત્પલની એક પત્રાવસ્થા
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯