Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 626
________________ भगवतीने सुदर्शन ! तत् तेनार्थेन-तेन कारणेन, एवं-पूर्वोक्तरीत्या उच्यते यत् अस्ति-संभ वति खलु एतयो:-पूर्वोक्तयोः पल्योपमसागरोपमयोः क्षयः-विनाशः इति वा, अपचय:-हासः इति वा । 'तएणं तस्स सुदंसणस्स से हिस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयमदं साच्चा निसम्म' ततः खलु तस्य सुदर्शनस्य श्रेष्ठिनः, श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिके एतमर्थ पूर्वोक्तार्थ श्रुत्वा निशम्य हदि अवधार्य 'सुभेण अच्झवसाणेणं, सुभेणं परिणामेणं लेसाहिं विसु. ज्झमाणीहि तयावरणिज्नाणं कम्माणं ख भोवसमेणं' शुभेन अध्यवसानेन-अध्यवसायेन, शुभेन परिणामेन, लेश्यामिः विशुद्रथमानाभिः, तदावरणीयानां कर्मणां क्षयोपशमेन 'ईहापोहमग्गणगवेसणं करेमाणस्स सन्नीपुव्वे समु प्पन्ने, एयमटुं सम्मं अभिसमेइ ईहाऽपोहमार्गणगवेषणं कुर्वतः संझिपूर्व संशीसंज्ञिभवः पूर्व-पूर्वस्मिन् जन्मनि यत्र तत्तथा संक्षिपूर्वम्-संज्ञिपूर्वाभिधं जातिस्म. अत्थि णं एएसिं पलिओवमसागरोवमाणं खएति वा अवचएति' इसी कारण हे सुदर्शन ! मैं ने पूर्वोक्तरूप से ऐसा कहा है कि पल्योपम और सागरोपम का क्षय होता है और हास भी होता है। 'तएणं तस्स सुदंसणस्स सेट्ठिस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स ऑतिए एयम सोच्चा निसम्म' इसके बाद श्रमण भगवान महावीर के मुखसे इस पूर्वोक्त अर्थको सुनकर के और उस पर हृदय से विचार करके उस सुदर्शन सेठ के शुभ परिणाम से और शुभ अध्यवसाय से तथा लेश्याओं की विशुद्धि से जायमान तदावरणीय कर्मों के क्षयोपशम से ईहापोहमग्गणगवेसणं करेमाणस्स सन्नीपुव्वे समुप्पन्ने, एयमढे सम्म अभिसमेइ' ईहा, अपोह, मार्गण और गवेषण करते २ संज्ञिपूर्व नाम तेण ण सुदसणा ! एवं वुच्चइ, अत्थिणं एएसिं पलिओवमसागरोवमाणं खएति वा अवचएति वा” 8 सुशन ! ते ४२णे में पूर्वरित ३५ मे ४यु छ । પલ્યોપમ અને સાગરોપમને ક્ષય પણ થાય છે અને હાસ પણ થાય છે. “तएणं तस्स सुदंसणस्स सेट्रिस्स समणस्स भमवओ महावीरस्स अंतिए एयम स्रोच्चा निसम्म" मडावीर प्रभु पासे 21 पातने सामजीन भने હદયમાં તે વિષે વિચાર કરીને, તે સુદર્શન શેઠના શુભ પરિણામથી, શુભ અધ્યવસાયથી, અને વેશ્યાઓની વિશુદ્ધિથી જાયમાન (ઉદ્દભવેલા) તદાવરણીય भाना या५शमयी “ईहापोहमगणगवेसणं करेमाणम्स सन्नीपुव्वे समुपन्ने, एयमट्ठ सम्मं अभिसमेइ " &t, सपा, भाग मने गवेषाधु ४२di કરતાં સંન્નિપૂર્વ નામનું જાતિસ્મરણ જ્ઞાન ઉત્પન્ન થઈ ગયું. આ પૂર્વજન્મનું સ્મરણ કરાવનારા જ્ઞાનને લીધે મહાવીર પ્રભુ દ્વારા પ્રતિપાદિત પૂર્વોક્ત શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯

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