Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ १० १२ सू० १ देवानांकालस्थितिनिरूपणम् ६२१ स्थितिः द्विसमयाधिका, यावत्-त्रिचतुःपञ्चषट्सप्लाष्टनवदशसमयाधिका, संख्येयसमयाधिका, असंख्येयसमयाधिका स्थितिरित्येवं रीत्या-'उकोसेणं तेतीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता, 'तेण परं वोच्छिन्ना देवाय, देवलोगाय' तेन परम्तदनन्तरम् व्युच्छिन्नाः देवाश्च, देवलोकाश्च भवन्ति ततः परं देवाच देवलोकाश्च न सन्तीति भावः। 'नएणं ते समणोवासया इसिभपुसस्स समणोवासगस्स एवमाइक्खमाणस्स जाव एवं परूवेमाणस्स एयम8 नो सद्दहंति, नो पत्तियंति, नो रोयंति' ततः खलु ते श्रमणोपासका ऋषिभद्रपुत्रस्य श्रमणोपासकस्य, एवं रीत्या आचक्षतः कथयतः यावत्-भाषमाणस्य, प्रज्ञापयतः मरूपयतश्च एतमर्थ-पूर्वोक्तार्थ समय अधिक, यावत् तीन, चार, पांच, छह, सात, आठ, नौ और दश समय अधिक, संख्यातसमय अधिक एवं असंख्यात समय अधिक होती हुई तेतीस सागरोपम तक की वही स्थिति उत्कृष्ट स्थिति हो जाती है तात्पर्य-कहने का यह है कि जघन्य स्थिति इनकी १० हजार की है और एक दो आदि असंख्यात तक के मध्यमस्थिति के विकल्पों से अधिक जो ३३ सागरोपम तक की स्थिति है वह उत्कृष्ट इनकी स्थिति है। 'तेण परं वोच्छिन्ना, देवा य देवलोगा य' इस स्थिति के बाद न कोई देव होते हैं और न कोई देवलोक होते हैं । अर्थात् इतनी उस्कृष्टस्थिति से और अधिक स्थितिवाले देवों में देव नहीं होते हैं, न देवलोक होते हैं। 'तएण से समणोवासया इसिभद्दपुत्तस्स समणोकासगस्स एवमाइक्खमाणस्स जाव एवं परूवेमाणस्स एयम8 नो सहहंति नो पत्तियंति, नो रोयंति' इस प्रकार से देवों की जघन्य और उत्कृष्टस्थिति का कथन करने वाले, यावत् उस पर भाषण देनेवाले, નવ, અને દસ સમય અધિક, સંખ્યાત સમય અધિક, અને અસંખ્યાત સમય અધિક થતાં થતાં ૩૩ સાગરેપમ પર્યન્તની જે સ્થિતિ થાય છે, તે સ્થિતિને તે દેવોની ઉત્કૃષ્ટસ્થિતિ કહે છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે તેમની જ ઘન્ય સ્થિતિ દસ હજાર વર્ષની છે, અને એક બે આદિ અસંખ્યાત પર્યન્તના મધ્યમસ્થિતિના વિકલ્પોથી અધિક જે ૩૩ સાગરોપમ પર્યન્તની स्थिति. ततमनट स्थिति छ. " तेण पर वोच्छिन्ना, देवा य देवलोगा य" 33 सागरी५म ४२di मधिर स्थितपणा व पडता नथा भने पक्ष ५९ जाता नथी. “तएण से समणोवासया इसिमद्दपुत्तस्स समणोवासयस्स एवमाइक्खमाणस जाव एवं परूवे माणस्स एयमटुं नो सहहंति, नो पत्तियति, नो रोयति" वानी धन्य भने हट स्थितिनुमा प्रहार કથન કરનારા, આ પ્રમાણે વિશેષ કથન કરનારા, આ પ્રમાણે પ્રાપના કર
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯