Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे करेंति' ईहामनुभविश्य तस्य स्वप्नस्य अर्थावग्रहणं कुर्वन्ति, 'करेत्ता, अन्नमण्णेणं सद्धिं संचालेंति' कृत्वा-फलं विज्ञाय अन्योन्येन सार्द्धम् संचारयन्ति-परस्परस्वप्नफलं विचारयन्ति, 'संचालेत्ता तस्स सुविणस्स लट्ठा गहियट्टा, पुच्छियट्ठा, विणिच्छियट्ठा, अभिगयटा, बलस्स रण्णो पुरओ सुविणसत्थाई उच्चारेमाणा उच्चारेमाणा एवं वयासी'-परस्परं संचार्य-विवार्य, तस्य स्वप्नस्य लब्धार्थाः-स्वतो. ज्ञातार्थाः, गृहीतार्थाः-परतो निश्चितार्थाः, संशये सति परस्परतः पृष्टार्थाः, विनिश्चितार्थाः प्रश्नानन्तरं विनिर्णीतार्थाः, अभिगतार्थाः-अभिगतार्थाः, बलस्य राज्ञः बाद में विशेषरूप से-ईहा रूप से-विचार किया 'अणुप्पविसित्ता तस्स सुविणस्स अत्थोग्गहण करेंति ' विचार करने के बाद फिर उन्होंने उस स्वप्न की यथार्थता का निश्चय किया 'करेत्ता अन्नमन्नेणं सद्धिं संचालेति' यथार्थता का निश्चय करके फिर परस्पर में उन्हों ने उस में स्वप्नफल का विचार किया 'संचालित्ता तस्स सुविणस्स लट्ठा गहियट्ठा पुच्छियहा, विणिच्छियट्ठा, अभिगयट्ठा, बलस्स रणो पुरओ सुविणसस्थाई उच्चारेमाणा उच्चारेमाणा एवं वयासी' स्वप्रफल का विचार करके जब वे स्वतः उस स्वप्नफल के लट्ठा लब्धार्थवाले हो गये, दूसरों से निश्चित किये गये उसके अर्थवाले हो गये, पुच्छियट्ठा पूछ पांछ कर अपने संशय को दूर करने वाले बन गये, विणिच्छियट्ठा स्वप्न के अर्थ को बिलकुल अच्छी तरह से निणीत कर चुकने वाले बन गये और अभिगयट्ठा सब प्रकार से अर्थ के ज्ञाता बन गये, तब दिया था. “ अणुप्पविसित्ता तस्स सुविणस्स अत्थोगहण करेंति" से प्रश्नमा
31 6तरीन तेभ ते २१ननी यया ताना निय यो. “करेत्ता अन्नमन्त्रणं सद्धि संचालेंति" त्या२ माह तेभर समाज साये या विद्यार। शत स्नान व विष विया२ या. “संचालित्ता तस्स सुविणस्स लट्ठा गहियदा पुच्छियदा, विणिच्छियटा, अभिगया, बलस्स रणो पुरओ सुविणसस्थाई उच्चारेमाणा उच्चारेमाणा एवं क्यासी" २५१ सा विया२ ४शन ल्यारे તેમણે તે સ્વપ્ન ફલનો “ક” અર્થ જાણી લીધે, એક બીજા સાથે તેમના નિર્ણય भगवी यां, 'पुच्छियट्ठा' ५७५२७ ४ीने न्यारे तमा ४२ना सशयथा हित मनी या, न्यारे तभो तना मथनी 'विणिच्छियहा' ५२।७२ निय 5री लीधी, मने न्यारे तभणे मधी शते 'अभिगयट्ठा' पूर्वा५२ ३५ अर्थाने omega લી, ત્યારે તેમણે બલરાજાની સમક્ષ સ્વપ્નશાસ્ત્રોને ફરી ફરીને આધાર આપી
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯