Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० ११ सू०९ सुदर्शनचरितनिरूपणम्
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पारिसीओ' अष्टौ कुब्जाः दासौः, यथा औपपातिके सूत्रे प्रतिपादितम् तथैवात्रापि प्रतिपत्तव्यम्, यावत् - भ्रष्टौ पारसी: - पारस देशोद्भवाः दासी', 'अड्ड छचे, अट्ठ छत्तधारीओ चेडीओ' अष्टौ छत्राणि, अष्टौ छत्रधारिणीश्रेटी', 'अट्ट चामराओ, अट्ठ चामरधारीओ वेडीओ' अष्टौ चामराणि, अष्टौ चामरधारिणीः बेटी', 'अट्ठ तालियंटे, अट्ठ तालियंटधारीओ चेडीओ' अष्टौ तालवृन्तानि -तालव्यजनानि, अष्टौ तालवृन्तधारिणीश्रेटी', 'अट्ठ करोडियाधारीयो चेडीओ ' अष्टौ करोटिका धारिणीश्रेटी :- ताम्बूलकरण्डधारिणीः दासीरित्यर्थः, 'अट्ठ खौरघाईओ, जाव अट्ठ अंकधाईओ' अष्टौ क्षीरधात्री:- दुग्धपाययित्रीः दासीः, यावत्
जैसा कि औपपाकिसूत्र में कहा गया है। यावत् आठ पारसदेश की जन्मी हुई दासियां दीं, 'अट्ठ छत्ते, अट्ठ छत्तधारीओ, वेडीओ' आठ छत्ते दिये और इन आठ छन्तों को अपने हाथ में रखने के लिये आठ दासियाँ दीं। 'अट्ठ चामराओ, अट्ठ चामरधारीओ चेडीओ' आठ चामर दिये और इन चामरों को अपने हाथ में रखने वाली या इन चामरों को ऊपर ढोरने वाली आठ दासियां दीं 'अट्ठ तालियंटे, अटु तालियंटधारीओ चेडीओ' आठ हवा करने के लिये पंखे दिये, और इनसे हवा करने वाली आठ दासियां दीं 'अट्ठ करोडियाधारीओ चेडीओ ' आठ ताम्बूल के डिब्बों को अपनी देखरेख में रखनेवाली दासियां दीं ' अड्ड खीरभाईओ, जाव अट्ठ अंकधाईओ' आठ क्षीरधात्रियां दीं जो दूध पिलाया करती थीं, यावत् आठ मज्जन धात्रियां दीं पारिसीओ " आठ डुगडी हासीयो हीधी. तथा " पारस देशभां न्भेसी भाई દાસીએ દીધી, ” આ કથન પર્યન્તનું ઔપપાતિક સૂત્રનુ` સમસ્ત કથન ગ્રહણુ ४२वु' लेहये. "अटूट छत्ते, अट्ठ उसधारीओ चेडीओ " मा छत्रा हीघां અને છત્ર ધારણ કરનારી આઠ દાસીએ દીધી. अटूठ चामराओ, अट्ठ चामरधारीओ चेडिओ " ४ याभर दीघां मने ते याभरीने धारण ४२नारीતે ચામરા વડે વાયુ ઢાળનારી આઠ દાસીએ દીધી હ अट्ठ तालियंटे, अट्ट तालियंटधारीओ चेडीओ " પવન નાખત્રા માટે આઠ પ ́ખા દીધા, અને તે પ'ખા વડે પવન નાખનારી આઠ દાસીએ દીધી. अट्ठ करोडियाधारीओ चेडीओ " ताभ्यूस (पान) ना उण्ण्यानी हेमरेज रामनारी भाउ हासीओ हीथी. " अट्ठ खीरधाईओ, जाव अट्ठ अंकधाईओ " मा क्षीरधात्री हीधी જે દૂધ પિવરાવવાનું કામ કર્યાં કરતી હતી, માઠ મજ્જનયાત્રીએ દીધી જે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯