Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्र तस्य खलु बलस्य राज्ञः प्रभावती नाम देवी आसीत् , सा च सुकुमारपाणिपादा, वर्णकः --'अहीनमतिपूर्णपश्चेन्द्रियशरीरा' इत्यादि वर्णनप्रकारः औपपातिकमूत्रो. क्तद्वादशतमसूत्रवर्णितकूणिकराज्ञी धारिणीदेवी वद् विज्ञेयः, यावत्-प्रत्यनुभवन्ती विहरति-तिष्ठति, 'तएणं सा पभावई देवी अन्नया कयाई तसि तारिसगंसि वासघरंसि अभितरओ सचित्तकम्मे, बाहिरओ दामयघट्टमहे' ततः खलु सा प्रभावती देवी अन्यदा कदाचित् तस्मिन, तादृशके पुण्यशालिनां योग्ये, वासगृहे, आभ्यन्तरतः सचित्रकर्मणि-चित्रकलारचनासहिते, बाह्यतो. मितघृष्टमृष्टेमितं-धवलितं, घृष्टं कोमलपस्तरादिना, अत एव मृष्टं-मसणं चिक्कणं यत्तत्तथा, पभावई नाम देवी होत्था' उस बल राजा की प्रभावती नाम की पट्टरानी थी 'सुकुमालपाणिपाया वण्णओ' इसके हाथ पैर बहुत अधिक सुकुमारता से युक्त थे। इसका भी वर्णन औपपातिक सूत्र के ११ वें सूत्र में 'अहीणप्रतिपूर्णरश्चेन्द्रियशरीराः' इत्यादिरूप से वर्णित हुए कूणिकराजा की रानी धारिणी देवी के समान जानना चाहिये वहां पर यह वर्णन "प्रत्यनुभयन्ती विहरति" इस अन्तिम पाठतक आया हुआ है। 'तरण सा पभावई देवी अन्नया कयाई, तसि तारिसगंसि वास घरंसि अभितरओ सचित्तकम्मे, पाहिरओ मियघट्टमटे' एक समय की बात है कि वह प्रभावती अपने पुण्यशालियों के निवास योग्य वासगृह में सो रही थी-यह वासगृह भीतर में तो नानाप्रकार के चित्रों से सुसज्जित था, और बाहर में लिपापुता था, चूने की सफेदी से धवलित किया हुआ था तथा मसाले के पत्थर से घिसकर चिकना किया ५४२ती. “सुकुमालपाणिपाया, वण्णओ' तेना &मने ५५ अति. શય સુકુમાર (કૅમ) હતાં. ઔપપાતિક સૂત્રમાં કૃણિક રાજાની રાણી ધારિ.
નું જેવું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે, એવું તેનું વર્ણન પણ સમજી લેવું. "अहीणप्रतिपूर्णपञ्चेन्द्रियशरीरा" तनां या प्रतिपू-यूनाधिश हित
तi भने ते पाये छन्द्रियोथी प्रतिपू ती. प्रत्यनुभवन्ती विहरति" पाये ઈન્દ્રિનાં સુખને અનુભવ કરતી હતી. આ અતિમ સૂત્રપાઠ પર્યન્તનું સમસ્ત વર્ણન અહીં ગ્રહણ કરવું જોઈએ.
तएण सा पभावई देवी अन्नया कयाई, तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अभि तरओ सचित्तकम्मे, बाहिरओ दूमियघटमटे" मे १मत पुग-यु प्रमा. વતી રાણી પુણ્યશાલીઓના નિવાસને ચાગ્ય એવાં પિતાને શયનગૃહમાં શયન કરી રહી હતી. તે શયનગૃહનો અંદરનો ભાગ વિવિધ પ્રકારનાં ચિત્રોથી સુસજિજત હતે, તથા બહારના ભાગ ચૂનાથી ઘેબેલે હો તથા મસાલાના પથ્થરથી घसा घसीन मुलायम ने यहार १२वामां मावसोडतो. “ विचित्त उल्लोय
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૯