Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे
एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत् - ' कइविहे णं भंते! लोए पण्णत्ते' कतिविधः खलु लोकः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह - ' गोयमा ! चउव्विहे लोए पण्णत्ते- ' हे गौतम! चतुर्विधो लोकः प्रज्ञप्तः, तंजहा - दव्बलोए, खेत्तलोए, काललोए, भावलोए ' तद्यथा - द्रव्यलोकः १, क्षेत्रलोकः २, काललोकः ३, भावलोकः ४, अथ क्षेत्रलोकमाह - 'खेतलोए णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ? गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! क्षेत्रलोकः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्त : ! भगवानाह - ' गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते' हे गौतम ! क्षेत्रलोकः खलु त्रिविधः प्रज्ञप्तः, ' तं जहा - अहोलोयखेत्तलोए १, तिरियलोयखेत्तलोए २, उड्डूळोय खेतलोए ३ तद्यथा - अधोलोक क्षेत्रलोकः, तिर्यग्लोक क्षेत्रलोकः, ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोकः, क्षेत्ररूपो लोकः सः - क्षेत्रलोक:करते समय उनसे ऐसा पूछा-' कइविणं भंते! लोए पण्णन्ते' हे भदन्त ! लोक कितने प्रकार का कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु ने ऐसा कहा'गोयमा' हे गौतम! 'चउब्विहे लोए पण्णत्ते' लोक चार प्रकार का कहा गया है । 'जहा' जो इस प्रकार से है- 'दव्वलोए, खेत्तलोए, काललोए, भावलोए' द्रव्यलोक, क्षेत्रलोक, काललोक और भावलोक । अब क्षेत्रलोक के विषय में गौतमस्वामी प्रभु से पूछते हैं कि-' खेत्तलोए णं भंते । कवि पणन्ते' हे भदन्त ! क्षेत्रलोक कितने प्रकार का कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-' गोयमा' हे गौतम! ' तिविहे पण्णत्ते ' क्षेत्रलोक तीनप्रकार कहा गया है 'तंजहा' जो इस प्रकार से है -'अहोलोयखेतलोए १, तिरियलोयखेत्तलोए २, उड्डलोय खेतलोए ३' अधोलोकक्षेत्रलोक १, तिर्यग्लोक क्षेत्रलोक २, और ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक ३.
भहावीर अलुने या प्रमाणे पूछयु - " कइविहेण भंते ! लोए पण्णत्ते ? " लगवन् ! उसा प्रअरना उद्यो छे ? महावीर प्रभुना उत्तर- " गोयमा " हे गौतम! " चउत्रिहे लोए पण्णत्ते - तंजड़ा " सो यार प्रहारनो उद्यो छे, थे प्रहारो नीचे प्रभाये छे " दव्वलोए, खेत्तलोए, काललोए, भावलोए, द्रव्यसेोउ, ક્ષેત્રલેક, કાળલાક અને ભાવલેાક હવે ક્ષેત્રલેાક વિષે ગૌતમ સ્વામી આ પ્રકા२ प्रश्न पूछे छे - ' खेत्तलोएणं भंते ! कइ विहे पण्णत्ते " डे भगवन् ! क्षेत्रो કેટલા પ્રકારને કહ્યો છે?
भडावीर अलुना उत्तर- " गोयमा " हे गौतम! " तिविहे पण्णत्ते " क्षेत्रोत्र अारना उद्यो छे " तंजहा ” ते प्ररोमा प्रमाणे छे“ अहोलोयखे सलोर १, तिरियलोयखेत्तलोए २, उडलोयखेत्तलोए ” (१) अधोलो! क्षेत्रखेोऊ, (२) तिर्यखेोक क्षेत्रले भने ( 3 ) ( सो क्षेत्री, उधुं पशु छे
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯