Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० १० सू० १ लोकस्वरूपनिरूपणम् ४०१ लोए णं भंते ! कि जीवा, जीवदेसा, जीवपएसा ? ' हे भदन्त ! तिर्यग्लोकक्षेत्रलोके खलु किं जीवाः, जीवदेशाः, जीवप्रदेशाः भवन्ति ? किंवा अजीवाः, अजीवदेशाः, अजीवप्रदेशाः भवन्ति ? भगवानाह-'एवं चेव' हे गौतम । एवमेवपूर्वोक्तरीत्यैव तिर्यग्लोकक्षेत्रलोके. जीवा अपि, जीवदेशा अपि, जीवप्रदेशा अपि, तथा अजीवा अपि, अजीवदेशा अपि, अजीवप्रदेशा अपि भवन्ति, 'एवं उड्रलोयखेत्तलोएवि' एवं-पूर्वोक्तरीत्यैव ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोकेऽपि जीवा अपि, जीवदेशा अपि, जीवप्रदेशा अपि, तथा अजीवा अपि, अजीवदेशा अपि, अजीवप्रदेशा अपि भवन्तीतिभावः, 'नवर अरूबी छबिहा, अद्धासमो नत्थि' नवरम्प्रदेश भी हैं, इत्यादि यह सब कथन यहां यावत् शब्द से गृहीत किया गया है। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'तिरियलोयखेत्तलोए ण भंते ! किं जीवा, जीवदेसा, जीवपएसा, हे भदन्त !तियग्लोकरूपक्षेत्रलोक में क्या जीव हैं जीवदेश हैं या जीवप्रदेश हैं ? अजीव हैं, या अजीवदेश हैं या अजीवप्रदेश हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं चेव' पूर्वोत्तरीति के अनुसार तिर्यग्लोक क्षेत्रलोक में जीव भी हैं, जीवदेश भी हैं, जीवप्रदेश भी हैं, तथा अजीव भी हैं, अजीवदेश भी हैं
और अजीवप्रदेश भी हैं ! ' एवं उडलोयखेत्तलोए वि' इसी प्रकार से ऊर्ध्वलोकरूप क्षेत्रलोक में भी जीव, जीवदेश और जीवप्रदेश तथा अजीव, अजीवदेश और अजीवप्रदेश हैं 'नवर अरुवी छविहा, अद्धा. समयो नस्थि' अधोलोक और तियरलोकरूप क्षेत्रलोक की अपेक्षा
દેશ (અંશે) પણ છે અને અજીવપ્રદેશ પણ છે.” ઈત્યાદિ અદ્ધાકાળ (४७) पर्यन्त ४थन मी अ५ ४२ मे.
गौतम स्वाभाना प्रभ-" तिरियलोयखेत्तलोए ण भंते ! किं जीवा, जीवदेसा, जीवपएमा० १" उ सन् ! तिय ३५ क्षेत्रमा शु । છે ખરાં? જીવદેશો છે ખરાં? જીવપ્રદેશે છે ખરાં? અછો કે અછવદેશ છે ખરાં? અજીવ પ્રદેશ છે ખરાં?
महावीर प्रभुन। उत्तर-“ एव चेव" गौतम ! मघौसानीभ तियલેક રૂપ ક્ષેત્રમાં પણ છે, જીવદેશે, જીવપ્રદેશ અજ, અજવદેશ અને म शानु मस्तित्व य छे. “ एवं उड्ढलोयखेत्तलोए वि" से प्रभारी ઉદ્ઘલેક રૂપ ક્ષેત્રમાં પણ છે, જીવદેશે, અને જીવપ્રદેશ અજ, અજીવ हेश भने १७१ प्रदेश राय छे. “नवरं अस्वी छविहा, अद्धासमयो नत्थि"
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯