Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
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रवेण वादित्रादिशब्दोच्चारणेन महता महता - अतिमहत्वपूर्णेत राज्याभिषेकेण अभिषिञ्चन्ति राजस्वयोग्य संस्कारेण संस्कृत्य संस्थापयितुं स्नपयन्ति 'अभिसिंचेत्ता पहलमालाए सुरभीए गंधकासाईए गायाई लहेइ' अभिषिच्य राजाभिषेकं कृत्वा पक्ष्मलकुमारया सुरभिणा रोमयुक्तकोमलया गन्धकाषायिक्या शाटिकया कोमल सुवासितघत्रेण गात्राणि शरीरावयवान् मुखादिकान् रुक्षयति प्रोव्छयति, 'लहेत्ता सरसेणं एवं जद्देव जमालिस्स अलंकारो तहेव जाव कप्परुक्खगं पित्र अलंकिय विभूसियं करे, करेत्ता करयलजावकद्दु सित्रभदं कुमारम् जपणं विजपणं वद्धावे ' रुक्षयित्वा प्रोव्छ्य सरसेन गोशीर्षेण चन्दनेन एवं पूर्वोक्तरीत्या यथैव जमालेः अलङ्कारः प्रतिपादित स्तथैव शिवभद्रस्यापि प्रतिपत्तव्यः यावत् कल्पवृक्षमित्र अलंकृतविभूषितं करोति, कृत्वा करतल यावत् शिरसावर्त मस्तके ध्वनि के बीच अति महत्व पूर्ण राज्याभिषेक से राजत्व योग्य संस्कार से सुसंस्कृत करके शिवभद्रकुमार का राज्याभिषेक किया- राज पद पर उसे स्थापित करने के लिये स्नान कराया. 'अभिसिंचित्ता पम्हलसुकुमालाए सुरभीए गंधकासाईए गायाइं लूहेइ ' शिवभद्रकुमार का जब ठाठ बाट के साथ राज्याभिषेक हो चुका - तब इसके बाद उसने उसके शरीर को पक्ष्मल सुकुमार सुरभि शाटिका से कोमल सुवासित वस्त्र से पोंछा. 'लहेत्ता सरसेणं' एवं जहेब जमालिस्स अलंकारो तव जाव परुक्खगं पिव अलंकियविभूसियं करेइ ' पोंछकर फिर उसने शरीर पर गोशीर्षचन्दन का लेप किया इस प्रकार जैसा जमालि का अलंकार करना कहा है, उसी प्रकार से यहां पर शिवभद्रकुमार के अलंकार होने के विषय में भी जानना चाहिये. राजाने यावत् कल्पवृक्ष के जैसा उसे अलंकृत विभूषित कर के बना दिया अर्थात् जब वह विविध प्रकारों के अलंकारों से विभूषित हो चुका. तब वह कल्पवृक्ष રાજ્યાભિષેક કરાયૈ-રાજય પદ પર તેને સ્થાપિત કરવાને માટે તેને સ્નાન
शब्यु अभिसिंचित्ता पम्हलसुकुमालाए सुरभीए गंधकासाईए गायाइ लूहेइ " આ રીતે અભિષેક કરાવ્યા પછી તેમણે તેના શરીરને રૂંવાટીના જેવાં કામળ मने सुगंधयुक्त वस्त्र वडे सूत्र "लूहेत्ता सरसेण एवं जहेव जमालिस्स अलंकारो तहेव जाr arपरुक्खगंधिव अलंकियविभूसिय करेइ " शरीरने छीने તેમણે તેના શરીર પર ગાશીષ ચન્દનના લેપ કર્યાં. ત્યાર ખાદ તેને વિવિધ અલકારાથી વિભૂષિત કરવામાં આવ્યા. જમાલિના અલંકારાના વર્ણન જેવું જ શિવભદ્રના અલંકારોનું પણ વર્ણન સમજવુ, શિવ રાજાએ તેને એવા તા અલંકારોથી વિભૂષિત કર્યું કે તે કલ્પવૃક્ષના સમાન શેલવા લાગ્યા
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
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