Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे आइक्खइ' जाव परू वेइ'-भो देवानुप्रियाः! एवं खलु पूर्वोक्तरीत्या शिवो राजर्षिः एवम्-उक्तप्रकारेण आख्याति, यावत् भापते, प्रज्ञापयति, प्ररूपयति- 'अस्थिणं देवाणुप्पिया ! तंचेव जाव वोच्छिन्ना दीवा य, समुदा य, से कहमेयं मन्ने एवं?' भो देवानुप्रियाः ! अस्ति संभवति खलु तदेव-पूर्वोक्तवदेव यावत्-मम अतिशयं ज्ञानदर्शनं समुत्पन्नम्-यत्-अस्मिन् लोके सप्तैव द्वीपाः, सप्तैव समुद्राः सन्ति, तेन परं ब्युच्छिन्नाः द्वीपाश्च, समुद्राश्च इति, तत् कथमेतत् मन्ये अहम् , एवं ? सत्यमेवैतत् शिवराजर्षिकथनमितिकथं सत्यतया मन्ये प्रमाणाभावत् इति लोकवाक्यम्। 'तएणं भगवं गोयमे बहुजणग्स अंतिए एयमढे सोचा, निसम्म, जाव सडूं जहा नियंठुसिए जाव तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य, समुद्दा य, से कहमेयं भंते ! एवं ?' ततः खलु भगवान् गौतमो भिक्षार्थ भ्रमन् बहुजनस्य अन्तिकेजाव परूवे' हे देवानुप्रियो ! शिवराजऋषि इस प्रकार से कह रहे हैं यावत् भाषण कर रहे हैं, प्रज्ञापित कर रहे हैं और प्ररूपित कर रहे हैं कि अस्थि णं देवाणुपिया! तंचेव जाव वोच्छिन्ना दीवा य समुदा य से कहमेयं मन्ने एवं' मुझे अतिशय ज्ञान और दर्शन उत्पन्न हुआ हैं सो में ऐसा उनसे जानता और देखता हूँ कि इस लोक में सात ही द्वीप हैं और सात ही समुद्र हैं-इन के बाद फिर द्वीप समुद्र नहीं है, सो मैं उन के इस कथन को " यह सत्य ही है" ऐसा कैसे मान-क्यों कि इस में कोई प्रमाण तो वे उपस्थित करते नहीं हैं। 'तएण भगवं गोयमे बहुजणस्स ऑतिए एयम8 सोच्चा, निसम्म जाव सर्ने जहा नियंठुद्देसए जाव तेणपर वोच्छन्निा, दीवा य समुद्दा य से कहमेयं भंते ! एवं' इस प्रकार से लोकवाक्य को सुनकर और प्पिया ! सिवे रायरिसी एवं आइक्खइ, जाव परूवेइ-अस्थिण देवाणुप्पिया ! तंचेव जाव वोच्छिन्ना दीवा य, समुदाय कहमेयं मन्न एवं" हेवाशुक्रिया! શિવરાજ ઋષિ આ પ્રમાણે કહે છે, ભાખે છે, પ્રજ્ઞાપિત કરે છે અને પ્રરૂપિત કરે છે કે “મને અતિશય જ્ઞાન અને દર્શન ઉત્પન્ન થયેલ છે. તે જ્ઞાન અને દર્શનના પ્રભાવથી હું જાણી શકું છું અને દેખી શકું છું આ લેકમાં સાત જ દ્વીપ છે અને સાત જ સમુદ્રો છે. તેનાથી વધારે દ્વીપ પણ નથી અને સમુદ્ર પણ નથી.” તેમના આ કથનને હું કેવી રીતે સત્ય માની શકું? તેઓ તેમના આ કથનને પુરવાર કરવા માટે કઈ પ્રમાણ તે બતાવતાં જ નથી. પ્રમાણને અભાવે તેમની તે વાત કેવી રીતે રવીકાર્ય બની શકે ?
"तए भगव गोयमे बहुजणस्स अतिए एयम सोच्चा निसम्म जाव सडूढ जहा नियंठुद्देसए जाब तेण परं वोच्छिन्ना दिवा समुदाय-से कहमेयं भंते !
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯