Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे अथ दशमं दृष्टिद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति-'तेणं भंते ! जीवा किं सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी?' हे भदन्त ! ते खलु उत्पलस्था जीवाः किं सम्यग्दृष्टयो भवन्ति ? वा मिथ्या दृष्टयो भवन्ति ? सम्यमिथ्या दृष्टयो वा भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा! नो सम्मदिट्ठी, नो सम्मामिच्छादिही, मिच्छा दिट्ठी वा, मिच्छादिहिणो वा' हे गौतम ! उत्पलस्था जीवाः नो सम्यग्रदृष्टयो भवन्ति, नो वा सम्यग् मिथ्यादृष्टयो वा भवन्ति, अपितु उत्पलस्य एकपत्रतायाम् जीवस्य एकत्वात् मिथ्यादृष्टिर्भवति वा, द्वन्यादिपत्रतायां तु जीवानां बहुत्वात् मिथ्यादृष्टयो वा भवन्ति, इति दशमं दृष्टिद्वारम् १०।
अब दशवे दृष्टिद्वार को आश्रित करके गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'तेणं भंते ! जीवा किं सम्मदिट्टी, मिच्छादिट्ठी, सम्ममिच्छादिट्टी' हे भदन्त! उत्पलस्थ वे जीव क्या सम्यक्दृष्टि होते हैं ? अथवा मिथ्यादृष्टि होते हैं ? या सम्यमिथ्यादृष्टि होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयना' नो सम्मदिट्ठी, नो सम्मामिच्छद्दिट्टी, मिच्छादिट्ठी वा, मिच्छादिद्विणो वा' उत्पलस्थ वे जीव न सम्यकदृष्टि होते हैं, न सम्यक् मिथ्यादृष्टि होते हैं किन्तु एक मिथ्यादृष्टि होता है और अनेक भी मिश्यादृष्टि होते हैं। यदि उत्पल एकपत्रावस्था वाला है तो ऐसी हालत में वह एक जीव वाला होता है-अतः वह एक जीव मिथ्यादृष्टि होता है और जब वह उत्पल अनेक पत्रों वाला हो जाता है-तब उसमें अनेक जीव हो जाते हैं और वे अनेक भी मिथ्या दृष्टि होते हैं। यह दशा दृष्टि द्वार हैं।
समानी ५३५९।-गौतम स्वाभान। प्रश्न-" तेण भंते ! जीवो किं सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिदी ?' सन् ! S५२५ તે છે શું સમ્યગૃષ્ટિ હોય છે? કે મિવાદષ્ટિ હોય છે? કે સમ્યુગ્મિાदृष्टि डाय छ ? महावीर प्रसुने। उत्तर--" गोयमा! गौतम! नो सम्मदिदी, नो सम्मामिच्छादिट्ठो, मिच्छादिट्ठी वा, मिच्छादिविणा वा' ५२२५ ७१ सभ्य દષ્ટિ હેતા નથી, અને અમ્યગૃમિથ્યાદ છે (મિશ્રદષ્ટિ) પણ હેતા નથી, પરન્તુ મિદષ્ટિ હોય છે. જે ઉત્પલ એક પત્રાવસ્થાવાળું હોય છે, તે એવી પરિસ્થિતિમાં તે એક જીવવાળું હોય છે, તેથી તે એક જીવ મિથ્યાદષ્ટિ હોય છે, અને જ્યારે તે ઉત્પલ અનેક પત્રોવાળું થાય છે, ત્યારે તેમાં અનેક જીવ પેદા થાય છે, અને તે બધાં જ મિથ્યાદષ્ટિ જ હોય છે. આ પ્રકારનું દસમું દષ્ટિદ્વાર છે. જે ૧૦ છે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯