Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे मेण्टमुख १०-अयोमुख ११-गोमुख १२-अश्वमुख १३-हस्तिमुख १४-सिंहमुख १५-व्याघ्रमुख १६-अश्वकर्ण १७-हस्तिकर्ण १८-कर्ण १९-कर्णमावरण २० उल्कामुख २१-मेघमुख २२-विद्युन्मुख २३-विद्युदन्त २४-घनदन्त २५-लष्ट दन्त २६-गूढदन्त २७ शुद्धदन्त २८-रूपाणि अवसे यानि। एतेषांच अष्टाविंशतेः उत्तरान्तीपानामायामविष्कम्भादिक नवमशतकस्य तृतीयादेशके वर्णितानुसारमगन्तव्यम् । एकैकान्तीपानाम् आयामविष्कम्भादि वर्णनार्थम् अष्टाविंशतिरुदेशकाः अवगन्तव्याः इत्यभिप्रायेणाह-'एए अट्ठावीसं उद्देसगा भाणियन्या' एते अष्टाविंशतिरुदेशका भणितव्याः, वक्तव्याः। अन्ते गौतमो भगवद् वाक्यं सत्यापयन्नाह- सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरइ' हे भदन्त ! तदेव शष्कुलीकण ८, आदर्शमुख ९ मेड्रमुख १०, अयोमुख ११. गोमुख १२, अश्वमुख १३, हस्तिमुग्ख १४, सिंहमुख १५ व्याघ्रमुख १६, अश्वकर्ण १७, हस्तिकर्ण १८, कर्ण १९, कर्णप्रावरण २०, उल्कामुख २१, मेघमुख २२, विद्युन्मुख २३, विगुद्दन्त २४, घनदन्त २५, लष्ठदन्त २६, गूढदन्त २७, और शुद्धदन्त २८, इन उत्तर दिग्वर्ती अन्तर द्वीपों की लंबाई चौड़ाई आदि का वर्णन नवमशतक के तृतीय उद्देशक में किया गया है सो उसी के अनुसार जानना चाहिये। एक २ अन्तर्वीप के आयाम एवं विष्कम्भ आदि के वर्णन करने निमित्त २८ उद्देशक हैं-इसी बातको प्रतिपादन करने के अभिप्राय से "एए अट्ठावीसं उद्देसगा भाणियन्वा" ऐसा कहा गया है। अब अन्त में गौतम भगवान् के वाक्य को सर्वथा सत्य रूप से प्रकट करने के अभिप्राय से 'सेव भंते ! सेव भंते! त्ति' (३) ४४f", (७) गोzj, (८) २०४९ls g", (८) मा भुम. (१०) भेद्भुम (११) मयोभुम (१२) गाभुम (१३) अश्वभुम, (१४) हस्तिभुम, (१५) सिभुम, (१६) व्याप्रभुम, (१७) APA), (१८) स्ति, (१८) ४ (२०) ४४ प्रा१२९५ (२१) भुस, (२२) भेषभुम, (२3) विधु-भुम, (२४) विहन्त, (२५) धनहन्त, (२६) सह-त, (२७) गूढहन्त भने (२८) શુદ્ધદઃ આ ઉત્તર દિશાના અન્તર્કંપની લંબાઈ, પહોળાઈ આદિનું વર્ણન નવમાં શતકના ત્રીજા ઉદ્દેશામાં કર્યા પ્રમાણે અહીં પણ ગ્રહણ કરવું પ્રત્યેક અન્તદ્વીપની લંબાઈ પહોળાઈ આદિનું પ્રતિપાદન કરતે એક એક ઉદ્દેશક છે. તેથી ૨૮ અન્તરદ્વીપનું વર્ણન કરતા ૨૮ ઉદ્દેશકે અહીં સમ14 . १ पातने सूत्रधारे "एए अदाधीस उद्देसगा भाणियव्वा " આ સૂત્રપાઠદ્વારા પ્રકટ કરી છે. સૂત્રને અને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુનાં
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯