Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१० उ०५ सू०२ चमरेन्द्रादीनामग्र महिषीनिरूपणम् १६१ भगवानाह - ' एवं चेव, नवर जमार रायहाणीए, सेसं जहा सोमस्स एवं वरुणस्स वि, नवरं वरुणा रायहाणीए' हे आर्याः ! एवमेव - पूर्वोक्तरीत्यैव सोमस्य अग्रमहिtrada यमस्यापि चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, अथच तत्र खलु एकैकस्याः देव्याः एकैकं देवसहस्रं परिवारः इत्यादिकं बोध्यम्, नवरं सोमापेक्षया यमस्य विशेषस्तु सोमाराजधानी स्थानेऽत्र यमायां राजधान्यामिति वक्तव्यम्, शेषं यथा सोमस्योक्त' तथैव वक्तव्यमिति एवं तथैव वरुणस्यापि तृतीयलोकपालस्य सोम
देव चतस्र एव अग्रमहिष्यो वक्तव्याः अथ च तत्र खलु एकैकस्याः देव्याः एकैकं देवी सहस्रं परिवारः, वैक्रिय देवी सहस्रचतुष्टयम्, किन्तु नवरम् - सोमयमापेक्षया वरुणस्य विशेषस्तु - तत्तन्नाम राजधान्यपेक्षयाऽत्र वरुणाय राजधान्यामिति हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- एवं चेव, नवरं जमाए रायहाणीए, सेसं जहा सोमस्स एवं वरुणस्स वि, नवरं वरुणाए रायहाणीए'
आर्यो ! पूर्वोक्त रीति से ही सोम की अग्रमहिषियों की तरह यम की भी चार अग्रमहिषियां कही गई हैं। इनमें एक एक अग्रमहिषी का देवी परिवार एक एक हजार का कहा गया है इत्यादि सब यहां जानना चाहिये. सेम की अपेक्षा यम के कथन में विशेषता ऐसी है कि सोम राजधानी के स्थान में यहां यमा राजधानी है. बाकी का और सब कथन सोम के कथन के जैसा ही है इस प्रकार का कथन तृतीय लोकपाल वरुण का भी जानना चाहिये. वरुण की भी चार अग्रमहिषियां
इनका देवी परिवार प्रत्येक अग्रमहिषीका एक २ हजार देवियों का इस प्रकार यह परिवार सब अग्रमहिषियोंका ४ हजार देवियों का हो जाता है । यह सब परिवार वैक्रिय शक्ति जन्य होता है । किन्तु सोम एवं यम के कथन की अपेक्षा वरुण के कथन में विशेषता ऐसी
महावीर प्रभुना उत्तर- " एवं चेत्र नवरं जमाए रायहाणीए, सेसं जहा सोमरस " हे आयो ! सोम बोडखे उपासना स्थन मे यभानुं उथन સમજવું. એટલે કે યમ મહારાજને પણ ચાર અગ્રમહિષીએ છે. તે પ્રત્યેકના એક એક હજાર દેવીઓના પરિવાર છે, ઇત્યાદિ કથન અહીં પણ ગ્રહણ કરવું. સેામ લેાકપાલના કથન કરતાં યમ મહારાજાના કથનમાં એટલી જ વિશેષતા છે કે યમ મહારાજની રાજધાનીનું નામ યમા છે તેમના સિંહાસનનુ નામ યમ सिहासन छे. " एवं वरुणस्स वि, नवरं वरुणाए रायहाणीए " न प्रभारनं थन ત્રીજા લેાકપાલ વરુણુ વિષે પણ સમજવુ'. પરન્તુ તેની રાજધાનીનું નામ વરુણા સમજવું. વરુણને પણ ચાર અગ્રમહિષીએ છે. તે પ્રત્યેકને દેવીપરિવાર એક એક હજારનેા હાવાથી કુલ ચાર હજારના દેવીપુરવાર થાય છે. આ સમસ્ત પરિવાર વૈક્રિયશક્તિજન્ય હેાય છે.
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯